मुंबई और दिल्ली देश के दो सबसे बड़े शहर हैं और सभी देशवासी ज़िन्दगी में एक ना एक बार तो इन शहरों का अनुभव करना चाहते ही हैं!
यही कारण है हर साल लाखों लोग इन शहरों में आते हैं नए रोज़गार के लिए, अपने सपने पूरे करने के लिए या सिर्फ़ घूमने के लिए| लेकिन इन दोनों में से कौन सा शहर आपको अपनापन देता है? अपना बना लेता है?
आईये देखें मुंबई या दिल्ली में से कौन है दिल के क़रीब, मुंबई या दिल्ली ?
1) लोगों का व्यवहार
जहाँ एक तरफ दिल्ली में लोग अपने अड़ोसी-पड़ोसियों का हाल जानने को आतुर रहते हैं, वहीं मुंबई में जब तक आप ख़ुद ना चाहें, कोई आपकी निजी ज़िन्दगी में दखल नहीं देता! लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि दिल्ली वाले ज़्यादा गर्मजोशी से आपका स्वागत करेंगे और मुंबई वाले ठंडा व्यवहार करेंगे! बात बस इतनी है कि किसे आप अपनी निजी ज़िन्दगी में आने देंगे और फिर देखना होगा कि कितना प्यार और इज़्ज़त मिलती है आपको! पर हाँ, दिल्ली वाले स्वाभाव से कुछ ज़्यादा ही लाड-प्यार जताने वाले होते हैं, यह तो जग-जाहिर है, है ना?
2) रहने की जगह
वैसे तो पैसा सबसे ज़्यादा बोलता है और जेब गर्म तो रहने की चिंता ही नहीं! लेकिन फिर भी देखा जाए तो मुंबई में रहने के साधन आसानी से उपलब्ध हैं, भले ही जेब में कितना भी पैसा हो, या चाहे ना ही हो! जहाँ दिल्ली में सिर्फ़ घर ही मिलते हैं, मुंबई में घर के नाम पर खोली भी मिल जाया करती है! हाँ यह बात और है कि मुंबई में छोटे-छोटे घरों में जेल जैसा अनुभव होता है और वहीं दिल्ली के बड़े मकानों में राजाओं वाली फ़ीलिंग आती है!
3) खाने का आराम
मुंबई में सबसे सस्ता टिकाऊ और आसानी से मिलने वाला आम आदमी का खाना है वड़ा पाओ! वहीं दिल्ली में खाने की इतनी वैरायटी है कि खाते-खाते थक जाएँगे, खाना ख़त्म नहीं होगा! और सबकी जेब अनुसार! शायद इसका कारण है उत्तर भारतियों का खाने को लेकर असीम प्यार! एक ही ज़िन्दगी है यार, खाना तो ठीक से खाना पड़ेगा, है कि नहीं?
4) काम के अवसर
जहाँ दिल्ली देश की राजधानी है, मुंबई को देश की अर्थव्यवस्था की राजधानी के नाम से जाना जाता है| मतलब साफ़ है, काम के अवसर भी मुंबई में ज़्यादा हैं और पैसा कमाने के भी! बस मेहनत करने का जज़्बा होना चाहिए, फिर तो चाँद-सितारे भी क़दमों तले होंगे!
5) भाषा
जिन्हें हिंदी बिलकुल ही नहीं आती, उनके लिए मुंबई और दिल्ली एक बराबर है| यार अंग्रेज़ी से ही तो काम चलाना पड़ेगा! लेकिन हिंदी जानने वालों के लिए मुंबई शुरुआती दिनों में एक झटका देती है! ऐसी मिलीजुली भ्रष्ट सी भाषा लगती है मुंबई की कि लगता है एक बार कोई अपनी ज़बान बोलने वाला मिल जाए, बस तृप्ति हो जायेगी! जो हिंदी-भाषी भाषा में अपनापन ढूँढ़ते हैं, उनके लिए तो दिल्ली ही बेहतर है| और जो खुद को भाषा के अनुरूप ढालने में विश्वास रखते हैं, मुंबई उनका खुली बाहों से स्वागत करती है!
यार ऐसा लग रहा है कोई ठीक-ठीक जवाब नहीं मिला, है ना?
अब क्या करें, दोनों ही शहरों की अपनी खूबियाँ और अपनी ही दिक्कतें हैं!
अंत में जहाँ आपका मन लग जाए, जहाँ आप ख़ुशी पा लें, वही शहर अपना है!
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