हल्दीघाटी की लड़ाई – बचपन से ही आप ये पढ़ते आए होंगे कि हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच एक युध्द हुआ था. इस हल्दीघाटी की लड़ाई में अकबर की जीत हुई थी और महाराणा प्रताप की हार, आपने, मैने हम सब ने यही पढ़ा है और इसी इतिहास को जाना है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अब कुछ ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं जो इस इतिहास को पूरी तरह बदल सकते हैं।
जी हां, सबसे पहली बात तो ये है कि ये युध्द सिर्फ हल्दीघाटी में नहीं हुआ था। दरअसल, हल्दीघाटी राजस्थान की दो पहाड़ियों के बीच स्थित एक छोटी सी घाटी है जिसका रंग हल्दी जैसा है और इसलिए ही इसे हल्दी घाटी कहा जाता है।
ये युध्द शुरू तो हल्दीघाटी के दर्रे से हुआ था लेकिन असल में महाराणा प्रताप सिर्फ नहीं लड़े थे बल्कि हल्दीघाटी से शुरू हुई ये हल्दीघाटी की लड़ाई खमनौर में चली थी।
कईं इतिहासकारों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि ये युध्द हल्दीघाटी में नहीं, बल्कि खमनौर में हुआ था। मुगल इतिहासकार अबुल फजल ने भी इस बात का जिक्र करते हुए इसे“खमनौर का युद्ध” कहा है।
कवि रामा सांदू ने भी इस बारे में कहा है कि ये युध्द शुरू तो हल्दीघाटी से हुआ था लेकिन भयंकर रक्तपात खमनौर में हुआ था।
इस युध्द की तारीख को लेकर तो दो मत प्रचलित हैं लेकिन युध्द के समय को लेकर कोई प्रश्न नहीं है। इस युध्द की निश्चित तारीख तो ज्ञात नहीं है लेकिन कहा जाता है कि ये युध्द या तो 18 जून को हुआ था या फिर 21 जून को हुआ था। इन दोनों तारीखों में कौन सी तारीख सही है ये प्रमाणिक रूप से नहीं कहा जा सकता है लेकिन प्रत्येक विवरण में ये बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि ये हल्दीघाटी की लड़ाई सिर्फ चार घंटे ही चली थी।
खैर अगर बात युध्द में जीत की करें तो अब तक यही सुना गया है कि इस हल्दीघाटी की लड़ाई में जीत अकबर की हुई थी लेकिन अब राजस्थान के इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने एक नए शोध के ज़रिए बताया है कि महाराणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध के बाद ज़मीनों के पट्टे जारी करते रहे जो उनकी हार को गलत साबित करता है क्योकि अगर वो हारे होते तो ये पट्टे कैसे जारी करते ?
युध्द में कईं मायनों में महाराणा प्रताप की सेना से मुगलों की सेमा बेहतर थी, हथियार और रणनीति के मामले में भी अकबर की सेना, महाराणा प्रताप की रणनीति से श्रेष्ठ थी। इस सबके बावजूद राजपूतों और हिंदू राजाओं ने अपने साहस और ताकत से मुगलों के दांतों तले चन चबवा दिए थे। उस समय हिंदू राजा ईमानदारी से शासन और राजनीति करने के लिए जाने जाते थे।
खैर आजकल जिस तरह से इतिहास में बदलाव और तोड़-मरोड़ हो रही है उससे अब ये अंदाजा़ लगाना तो मुश्किल रह गया है कि क्या सच है क्या सिर्फ किस्सा या कहानी, क्योकि आज रोज़ एक नया इतिहास लिखा जा रहा है, सोशल मीडिया पर भी हर दिन किसी ऐतिहासिक घटना को लेकर अलग तथ्य पेश किए जाते हैं ऐसे में सच और झूठ का निर्णय आपके ही हाथों में है।
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