पांडव जब जा रहे थे स्वर्ग की ओर – तब पांडवों के साथ क्या क्या हुआ ?
हमारे वेदों—पुराणों की वजह से आज विदेश में भी हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है.
वहां के लोग भी भारत के रिति – रिवाजों के आगे नतमस्तक होते देखे जा सकते हैं.
आइए आज हम आपको महाभारत से संबंधित एक और सच से रूबरू करवाते हैं. पांडव जब जा रहे थे स्वर्ग की ओर- जी हां, वही सच जो आज आपको ना ही किताबों में मिलेगा और न ही किसी सर्च इंजन पर. पांडव जब जा रहे थे स्वर्ग की ओर तब उनके साथ क्या क्या हुआ था –
पांडव जब जा रहे थे स्वर्ग की ओर –
1. सफ़र की शुरुआत
श्री कृष्ण सहित पुरे यदुवंशियों के मारे जाने से दुखी पांडव परलोक जाने का निश्चय करते हैं. इस क्रम में पांचो पांडव और द्रौपदी स्वर्ग पहुंचते है, जहां द्रोपदी, भीम, अर्जुन, सहदेव और नकुल शरीर को त्याग कर स्वर्ग पहुंचते हैं, वहीं युधिष्ठर सशरीर स्वर्ग पहुंचते हैं. इस पूरे सफर में उनके साथ एक कुत्ता भी होता है.
2. द्रौपदी का पतन सबसे पहले
पांचों पांडव, द्रौपदी तथा वह कुत्ता जब सुमेरु पर्वत पर चढ़ रहे थे, तभी द्रौपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ी. द्रौपदी को गिरा देख भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि द्रौपदी ने कभी कोई पाप नहीं किया. तो फिर क्या कारण है कि वह नीचे गिर पड़ी? युधिष्ठिर ने कहा कि द्रौपदी हम सभी में अर्जुन को अधिक प्रेम करती थीं. इसलिए उसके साथ ऐसा हुआ है. ऐसा कहकर युधिष्ठिर द्रौपदी को देखे बिना ही आगे बढ़ गए.
3. फिर गिरे सहदेव
द्रौपदी के गिरने के थोड़ी देर बाद सहदेव भी गिर पड़े. भीम ने सहदेव के गिरने का कारण पूछा तो युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव किसी को अपने जैसा विद्वान नहीं समझता था, इसी दोष के कारण इसे आज गिरना पड़ा है.
4. ऐसे हुई नकुल की मृत्यु
द्रौपदी व सहदेव के बाद चलते-चलते नकुल भी गिर पड़े. भीम ने जब युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था. वह किसी को अपने समान रूपवान नहीं समझता था. इसलिए आज इसकी यह गति हुई है.
5. अर्जुन का पतन
युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन व वह कुत्ता जब आगे चल रहे थे, तभी थोड़ी देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े. युधिष्ठिर ने भीम को बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर बहुत अभिमान था. इसने कहा थी कि मैं एक ही दिन में शत्रुओं का नाश कर दूंगा, लेकिन ऐसा किया नहीं. अपने अभिमान के कारण ही अर्जुन की आज यह हालत हुई है. ऐसा कहकर युधिष्ठिर आगे बढ़ गए.
6. भीम का पतन
थोड़ी आगे चलने पर भीम भी गिर गए. तब भीम ने युधिष्ठिर को पुकार कर पूछा कि हे राजन यदि आप जानते हैं तो मेरे पतन का कारण बताईए? तब युधिष्ठिर ने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करते थे. इसलिए तुम्हें आज भूमि पर गिरना पड़ा है. यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए. केवल वह कुत्ता ही उनके साथ चलता रहा.
7. युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग में गए
युधिष्ठिर कुछ ही दूर चले थे कि उन्हें स्वर्ग ले जाने के लिए स्वयं देवराज इंद्र अपना रथ लेकर आ गए. तब युधिष्ठिर ने इंद्र से कहा कि मेरे भाई और द्रौपदी मार्ग में ही गिर पड़े हैं. वे भी हमारे साथ चलें, ऐसी व्यवस्था कीजिए. तब इंद्र ने कहा कि वे सभी पहले ही स्वर्ग पहुंच चुके हैं. वे शरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंचे हैं और आप सशरीर स्वर्ग में जाएंगे.
8. यमराज ने लिया था कुत्ते का रूप
इंद्र की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परम भक्त है. इसलिए इसे भी मेरे साथ स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिए, लेकिन इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया. काफी देर समझाने पर भी जब युधिष्ठिर बिना कुत्ते के स्वर्ग जाने के लिए नहीं माने तो कुत्ते के रूप में यमराज अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए (वह कुत्ता वास्तव में यमराज का ही रूप था).
9. देवदूत नरक लेकर आया था युधिष्ठिर को
स्वर्ग जाकर युधिष्ठिर ने देखा कि वहां दुर्योधन एक दिव्य सिंहासन पर बैठा है, अन्य कोई वहां नहीं है. यह देखकर युधिष्ठिर ने देवताओं से कहा कि मेरे भाई तथा द्रौपदी जिस लोक में गए हैं, मैं भी उसी लोक में जाना चाहता हूं. मुझे उनसे अधिक उत्तम लोक की कामना नहीं है. तब देवताओं ने कहा कि यदि आपकी ऐसी ही इच्छा है तो आप इस देवदूत के साथ चले जाइए. यह आपको आपके भाइयों के पास पहुंचा देगा. युधिष्ठिर उस देवदूत के साथ चले गए.
10. इसलिए युधिष्ठिर को देखना पड़ा था नरक
देवदूत युधिष्ठिर को ऐसे मार्ग पर ले गया, जो बहुत खराब था. उस मार्ग पर घोर अंधकार था. उसके चारों ओर से बदबू आ रही थी, इधर-उधर मुर्दे दिखाई दे रहे थे.
जब युधिष्ठिर वापस लौटने लगे तो उन्हें दुखी लोगों की आवाज सुनाई दी, वे युधिष्ठिर से कुछ देर वहीं रुकने के लिए कह रहे थे. युधिष्ठिर ने जब उनसे उनका परिचय पूछा तो उन्होंने कर्ण, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रौपदी के रूप में अपना परिचय दिया. तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा कि तुम पुन: देवताओं के पास लौट जाओ, मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा.
थोड़ी देर बाद यहाँ देवता प्रकट होते हैं और वह युधिष्ठिर को बताते हैं कि आपने अश्वत्थामा की मृत्यु का झूठ बोला था इसलिए आपको नरक में आना पड़ा है. कुछ देर बाद युधिष्ठिर को फिर से स्वर्ग ले जाया जाता है.
तो यह सबकुछ हुआ पांडव जब जा रहे थे स्वर्ग की ओर – यह कहानी सिद्ध करती है कि हर व्यक्ति को उसके कर्मों का फल देना ही पड़ता है. अच्छे कर्मों का वाला इंसान स्वर्ग जाता है और बुरे कर्मों वाले को नरक में जगह दी जाती है.
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