10. इसलिए युधिष्ठिर को देखना पड़ा था नरक
देवदूत युधिष्ठिर को ऐसे मार्ग पर ले गया, जो बहुत खराब था. उस मार्ग पर घोर अंधकार था. उसके चारों ओर से बदबू आ रही थी, इधर-उधर मुर्दे दिखाई दे रहे थे.
जब युधिष्ठिर वापस लौटने लगे तो उन्हें दुखी लोगों की आवाज सुनाई दी, वे युधिष्ठिर से कुछ देर वहीं रुकने के लिए कह रहे थे. युधिष्ठिर ने जब उनसे उनका परिचय पूछा तो उन्होंने कर्ण, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रौपदी के रूप में अपना परिचय दिया. तब युधिष्ठिर ने उस देवदूत से कहा कि तुम पुन: देवताओं के पास लौट जाओ, मेरे यहां रहने से यदि मेरे भाइयों को सुख मिलता है तो मैं इस दुर्गम स्थान पर ही रहूंगा.
थोड़ी देर बाद यहाँ देवता प्रकट होते हैं और वह युधिष्ठिर को बताते हैं कि आपने अश्वत्थामा की मृत्यु का झूठ बोला था इसलिए आपको नरक में आना पड़ा है. कुछ देर बाद युधिष्ठिर को फिर से स्वर्ग ले जाया जाता है.
तो यह सबकुछ हुआ पांडव जब जा रहे थे स्वर्ग की ओर – यह कहानी सिद्ध करती है कि हर व्यक्ति को उसके कर्मों का फल देना ही पड़ता है. अच्छे कर्मों का वाला इंसान स्वर्ग जाता है और बुरे कर्मों वाले को नरक में जगह दी जाती है.