हमारी पौराणिक कथाओं में एक से बढ़कर एक अनूठी और आश्चर्यचकित कर देने वाली घटनाओं का वर्णन है.
अब इनमें से कौनसी सत्य है और कौनसी मिथक ये तो वही लोग जानते है जिन्होंने ग्रंथों कि रचना की थी. हम और आप तो केवल अनुमान ही लगा सकते है कि ये जो कथाएं है उनमें कितनी सच्चाई है.
आज आपको जो पौराणिक कथा बताने जा रहे है वो शायद आपने पहले कभी ना सुनी हो.
आइये आपको बताते है कि क्यों सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु के पुत्रों का वध भगवन शिव ने किया था…
सागर मंथन की कथा तो हमने बहुत बार सुनी है. किस प्रकार वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र का मंथन देवताओं और असुरों ने किया था. सागर मंथन के दौरान बहुत सी चमत्कारिक और बहुमूल्य वस्तुएं निकली. इन सब वस्तुओं को बारी बारी से देवताओं और असुरों में बाँट लिया गया.
लेकिन संघर्ष कि स्थिति तब आई जब समुद्र में से अमृत निकला. जिसे पीने पर अमरता प्राप्त हो जाती है. अमृत के लिए देवताओं और असुरों में झगडा शुरू हो गया. सभी चिंतित हो गए यदि अमृत असुरों के हाथ लग गया तो तीनों लोकों में उनका राज हो जायेगा.
कोई युक्ति न सूझने पर सभी देवता विष्णु के पास मदद ले लिए गए
भगवान विष्णु अपनी माया के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने देवताओं की समस्या सुनी और समाधान करने का आश्वासन दिया. भगवान विष्णु ने अत्यंत रूपवान स्त्री का मोहिनी रूप धारण किया और असुरों को रिझाने लगे. मोहिनी रूप को देखकर सभी असुर लट्टू हो गए और उनके पीछे पीछे आने लगे. भगवान विष्णु ने अपनी माया से मोहिनी जैसी अनेकों अप्सराओं का निर्माण भी किया.
इन अप्सराओं पर मोहित होकर सभी असुर उन्हें अपने साथ ले जाने लगे. सभी असुर अप्सराओं और मोहिनी के साथ पाताल चले गए.
पाताल में जाने के बाद असुरों ने उन रूपवान अप्सराओं के साथ हर तरह से आनंद उठाया. जब असुर ऊपर अमृत लेने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि अमृत तो देवताओं ने पी लिया था.
क्रोधित होकर असुरों ने देवताओं पर हमला किया. भगवान विष्णु ने असुरों को परास्त कर दिया और उन्हें पाताल में खदेड़ दिया.
भगवान विष्णु को देखकर पाताल कि अप्सराएँ उन पर मोहित हो गयी और उन्होंने शिव से वरदान माँगा कि विष्णु को पाताल में ही रहने दिया जाए.
अप्सराओं कि विनती पर भगवान शिव ने विष्णु कि यादाश्त भुला दी और उन्हें पाताल में छोड़ दिया. समय बीतने के साथ भगवान विष्णु और अप्सराओं के संबंधों के फलस्वरूप बहुत से बालकों का जन्म हुआ.
भगवन विष्णु और अप्सराओं की ये संताने बहुत ही आसुरी प्रवृत्ति की थी. इनके अत्याचारों से धरती और स्वर्ग कांप उठे थे. व्यथा सुनकर भगवान शिव ने वृषभ रूप लिया और पाताल में जाकर विष्णु के सभी आसुरी पुत्रों का वध कर दिया.
जब विष्णु को इस बात का पता चला तो वो अत्यंत क्रोधित हो उठे और भगवान शिव को युद्ध के लिए ललकारने लगे. वृश्भ्ह रुपी शिव और विष्णु में भीषण युद्ध हुआ. ये युद्ध लगातार कई वर्षों तक चलता रहा लेकिन दोनों में से कोई भी देवता युद्ध से पीछे नहीं हट रहा था. इस भीषण युद्ध को देखकर देवता और दानव सभी भयभीत हो गए.
पाताल कि अप्सराओं ने इस भीषण युद्ध को देखकर भगवन विष्णु को अपने वरदान से मुक्त कर दिया. इसके बाद युद्ध खत्म हुआ और भगवान विष्णु पाताल से बैकुंठ वापस चले गए.
तो देखा आपने कैसे सृष्टि के पालक और संहारक एक दुसरे की जान के दुश्मन बन गए थे.अगर समय रहते ये युद्ध रोका नहीं जाता तो सृष्टि का सर्वनाश निश्चित था.
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