पैदा होने से लेकर पढ़ाई-लिखाई ख़त्म करने तक हम अपने माँ-बाप पर आश्रित होते हैं|
उसके बाद शुरू होता है करियर, फिर शादी, फिर हमारे बच्चे और फिर एक दिन बूढ़े होकर ज़िन्दगी ख़त्म!
लेकिन इस सब के बीच ज़िन्दगी कब शुरू होती है? हम रोटी कमाने के अलावा, बच्चे पालने के अलावा जीते कब हैं?
एक और नज़रिये से देखें तो नयी शुरुआत कब से होनी चाहिए? 20 कि उम्र से, 30 कि उम्र से , 40 की उम्र से या उस के भी बाद? कौन सा वक़्त है अपने मन से जीने का, अपने मन की करने का, अपने सपनों के पीछे दौड़ने का या सब कुछ ख़त्म होने के बाद फिर से एक नयी शुरुआत करने का?
गौर से देखेंगे तो यह जवाब आपको बाहर नहीं ढूँढना पड़ेगा| इसका जवाब आपके अंदर ही है और वो यह है कि ज़िन्दगी तब शुरू होती है जब आप जीना शुरू कर देते हैं! जिस वक़्त आप अपनी रुकी, बेजान बोरिंग सी ज़िन्दगी से ऊब कर यह फैसला लेते हैं कि अब एक नयी शुरुआत होगी, बस समझ लीजिये आपकी ज़िन्दगी के इंजन में नयी जान आ जाती है| मानो बैटरी रिचार्ज हो गयी हो! फिर चाहे आप काम की नयी शुरुआत करें, नए रिश्ते बनाने की या किसी भी उम्र में कुछ नया पढ़ने-लिखने की| इस सबके लिए उम्र की न कोई सीमा है न कोई बंधन!
बहुत पुरानी कहावत है, जब जागो तब सवेरा!
यही बात हम सबके जीवन पर लागू होती है| अगर आप व्यापर में धोका खाकर निराश बैठे हैं, कोई बात नहीं, ऐसा होता है| ज़रूरी है कि कमर फिर से कस लीजिये, एक बार फिर खड़े हो जाएये मैदान-ए-जंग में लड़ने के लिए| एक बार मन बना लिया ना लड़ाई का, आधी लड़ाई तो आप जीत ही गए! कई सालों से एक ही रिश्ते में थे और अब आपको और आपके साथी को लगा कि रिश्ते की एक्सपायरी डेट आ चुकी है तो उस में कोई बुराई नहीं है| आराम से पुराने बंधन तोड़िये और नए रिश्तों को अपनाने की तरफ क़दम बढाइये| सच मानिए, हर फैसला आपके बस में है और आप ही अपनी ज़िन्दगी की कमान संभाले हुए हैं!
कभी भी यह सोच के मत बैठ जाइए कि अब तो उम्र हो गयी, यह काम अब नहीं होगा! जब तक दिल से जवान हैं, ज़िन्दगी जवान है और सब कुछ मुमकिन है!
जज़्बा रखिये जीने का, ज़िन्दगी ख़ुद आप तक दौड़ती हुई आ जायेगी!