इतिहास

जानिए क्या हुआ जब अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमान जी चले गए !

दोस्तों महाभारत में इस बात का जिक्र किया गया है कि युद्ध के दौरान हनुमान जी अर्जुन के रथ पर स्वयं विराजित थे. लेकिन जैसे हीं युद्ध समाप्त हुआ हनुमान जी उनके रथ से चले गए.

इस बात से तो हम सभी भली-भांति वाकिफ हैं कि महाभारत युद्ध के दौरान क्या-क्या घटित हुआ.

लेकिन शायद हीं आपको इस बात की जानकारी हो कि अर्जुन के रथ पर से महावीर हनुमान के जाने के बाद क्या हुआ.

आइए हम आपको बताते हैं उसके बाद की सम्पूर्ण घटना.

महाभारत के अनुसार कहा जाता है कि जब पांडव सेना ने कौरव सेना का विनाश कर दिया तो दुर्योधन वहां से भागकर एक तालाब में जा छिपा. जब पांडवों को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने युद्ध के लिए दुर्योधन को ललकारा. जिस पर दुर्योधन तालाब से बाहर निकल आया और भीम ने दुर्योधन को पराजित कर दिया. मरणासन्न अवस्था में ही दुर्योधन को छोड़कर पांडव अपने-अपने रथ पर सवार होकर कौरवों के शिविर में आ गए. तब अर्जुन से भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि वो पहले रथ से उतरे और उसके बाद वो स्वयं उतरे.

जैसे हीं भगवान श्रीकृष्ण रथ से उतरे हनुमान जी भी वहां से उठ गए और देखते हीं देखते अर्जुन का रथ जल उठा, जल कर राख हो गया. ऐसे में अर्जुन काफी अचंभित हुए और उन्होंने श्रीकृष्ण से इसका कारण जानना चाहा. तब भगवान कृष्ण ने बताया कि ये रथ तो दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले हीं जल गया था. चुकी मैं वहां बैठा था इस कारण अब तक ये जल नहीं हो पाया था. अब जब कि तुम्हारा काम पूरा हो चुका है, तब मैंने उसे छोड़ दिया. इसलिए अब ये रथ भस्म हो गया.

द्रोपति ने कहा था भीम को कमल लाने के लिए

जब पांडव वनवास में थे तो बद्रीकाश्रम में एक दिन उड़ते हुए एक सहस्त्रदल कमल पहुंच गया था. द्रौपदी ने उस कमल को उठा लिया और भीम से कहा ये बहुत हीं खूबसूरत है. मैं ये कमल धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट स्वरूप प्रदान करना चाहती हूं. आप मुझे ऐसे बहुत सारे कमल लाकर दीजिए. द्रौपदी  की बात सुनकर भीम उसी ओर चल पड़े जिधर से कमल उड़कर बद्रिकाश्रम आया था. भीम के चलने से बादलों के समान भीषण आवाज गूंजती थी. जिससे डर कर उस जगह पर रहने वाले पशु-पक्षी भागने लगे.

गंधमादन पर्वत पर रहते थे हनुमान जी

कमल पुष्प को ढूंढते-ढूंढते भीम केले के एक बगीचे तक पहुंच गए. ये बगीचा गंधमादन पर्वत की चोटी पर मौजूद काफी लंबा-चौड़ा था. भीम निडर होकर उस बगीचे में पहुंच गए. यहां भगवान श्री हनुमान रहा करते थे. हनुमान को अपने भाई के वहां आने का आभास हो गया. ( धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि हनुमान जी पवन पुत्र हैं. और भीम भी इसलिए दोनों भाई हुए.) हनुमान जी को लगा कि भीम के लिये ये मार्ग सही नहीं है, इसलिए भीम की रक्षा की खातिर हनुमानजी केले के बगीचे से होकर जाने वाले संकरे रास्ते को रोककर वहीं लेट गए.

भीम को रोकना चाहते थे हनुमान
जाते हुए भीम को रास्ते पर वनराज हनुमान लेटे हुए दिखाई दिए. ऐसे में भीम वहां पहुंचकर जोर से गर्जना की. हनुमान जी ने उनकी आवाज सुनकर अपनी आंखें खोलते हुए उपेक्षा भरी दृष्टि से भीम की तरफ देखा और पूछा कि कौन हो तुम? और यहां क्या कर रहे हो? मैं तो बीमार हूं. और आराम के  लिये यहां नींद से सो रहा था. भला तुमने मुझे क्यों उठा दिया. यहां से आगे बढ़ने पर ये पर्वत अगम्य है. इस पर कोई नहीं जा सकता है. इसलिए तुम यहीं से लौट जाओ.

भीम ने ऐसे दिया हनुमान जी को अपना परिचय
हनुमान जी को सुनने के बाद भीम ने बोला कि आप कौन हैं? और इस जगह पर क्या कर रहे हैं? मैं तो कुरुवंश में उत्पन्न हुआ और माता कुंती के गर्भ से जन्म लिया हूं. और महाराज पांडु मेरे पिता हैं. लोग मुझे वायुपुत्र के रुप में भी जानते हैं. मेरा नाम भीम है.
हनुमान जी ने कहा कि मैं तो मात्र एक बंदर हूं. मैं तुम्हें इस रास्ते से इधर नहीं जाने दूंगा. तुम्हारे लिए अच्छा होगा कि यहीं से लौट जाओ. नहीं तो तुम मारे जाओगे.

जब भीम ने हनुमान से मांगा जाने का रास्ता
भीम ने हनुमान जी से कहा कि चुकी इस संसार में मौजूद सभी प्राणियों में ईश्वर का निवास है. इसलिए मैं आपको नहीं लांघुंगा. मुझे परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान है. इसलिए खुद को रोके हुआ हूं. नहीं तो तुम तो क्या, मैं तो इस पर्वत को भी लांघ जाता. ठीक उसी तरह जिस तरह हनुमान जी समुंद्र को लांघे थे.

तब हनुमान जी ने भीम से पूछा कि ये हनुमान कौन थे? जिन्होंने समुंद्र को लांघ दिया था? उनके विषय में तुम मुझे बताओ. तब भीम ने कहा कि वो मेरे भाई हैं. और हनुमान जी श्रीरामचंद्र जी की पत्नी सीता जी की खोज में जब निकले थे, तो उन्होंने एक ही छलांग में 100 योजन बड़ा समुंद्र लांघ दिया था. मैं भी पराक्रम और बल में उन्ही के जैसा हूं. इसलिए अब आप खड़े हो जाइए और मुझे जाने का रास्ता दीजिए. यदि आपने मेरी आज्ञा नहीं मानी तो मैं आपको यमलोक पहुंचा दूंगा.

जब हनुमान जी की पूंछ नहीं उठा पाए भीम
भीम की बात को सुनने के बाद हनुमान जी ने कहा कि, वीर तुम क्रोध मत करो. मैं एक बूढ़ा बंदर हूं. मुझ में उठने की हिम्मत नहीं है. इसलिए तुम मेरे ऊपर एक कृपा करो और मेरा पूंछ हटाकर यहां से निकल जाओ.

हनुमान जी के ऐसा कहने पर भीम को उनपर हंसी आ गई, और अपने बाएं हाथ से पूंछ को हटाने लगे. लेकिन भीम हनुमान जी की पूंछ को हिला तक ना सके. ऐसे में भी हनुमान जी के पास पहुंचे और निवेदन करते हुए कहा कि आप कौन हैं? हमें अपने विषय में बताइए और मेरे द्वारा बोले गए कटु वचनों के लिए मुझे क्षमा कीजिये.

तब जाकर हनुमान जी ने अपना परिचय भीम को देते हुए कहा कि तुम जिस मार्ग पर जाना चाहते हो, उस मार्ग में देवता का निवास है. मनुष्य के लिए ये सुरक्षित नहीं. इसलिए मैंने तुम्हें रोकने की कोशिश की. तुम जहां जाना चाहते हो वो सरोवर यहीं पर है.

हनुमान जी ने भीम को बताया था चारों युगों के बारे में

हनुमान जी की बातों से भीम को काफी प्रसन्नता हुई. और उन्होंने बोला कि समुंद्र को लांघते वक्त जिस विशाल रूप को आपने धारण किया था, मैं भी उसे देखना चाहता हूं. भीम ने जब ऐसा कहा तो हनुमान जी ने कहा कि तुम मेरे उस रूप को नहीं देख पाओगे. और कोई दूसरा पुरुष भी मेरे उस रूप को नहीं देख सकता. सतयुग का समय दूसरा था.  द्वापर और त्रेता का भी दूसरा है. काल हमेशा क्षय करने वाला होता है. अब मेरा वो रूप है ही नहीं.
इसपर भीम ने कहा कि आप मुझे युगों के बारे में बताएं.  भीम के अनुरोध पर हनुमान जी ने कृतयुग, त्रेतायुग और फिर द्वापर युग व अंत में कलयुग के बारे में कहा.

हनुमान जी ने भीम को अपना विशाल रूप दिखाया
हनुमान जी की बातों से प्रसन्न होते हुए फिर से भीम ने आग्रह किया कि वो अपना विशाल रूप दिखाएं. और कहा कि जब तक आप मुझे अपना वो रुप नहीं दिखाएंगे मैं यहां से कहीं नहीं जाऊंगा. यदि मेरे ऊपर आपकी कृपा है, तो मुझे आप अपने उस दिव्य रुप के दर्शन कराएं.

भीम के ऐसा कहने पर हनुमान जी ने उन्हें अपने स्वरूप का दर्शन दिया. और भीम को अपने गले से लगा लिया. ऐसा करने से भीम की सारी थकान दूर हो गई. और वे हर तरह से अनुकूलता का अनुभव करने लगे.

हनुमान जी ने भीम को दिया था ये वरदान
हनुमान जी ने भीम से कहा कि तुम मेरे भाई हो और मैं तुम्हारा प्रिय करूंगा. जिस वक्त तुम शत्रु की सेना में पहुंच कर सिंहनाद करोगे, मैं उस समय अपने शब्दों से तुम्हारी गर्जना को बढ़ा दिया करूंगा. और अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठकर ऐसी गर्जना करूंगा कि शत्रुओं के प्राण सूख जाएंगे. और उन्हें मारने में तुम्हें आसानी होगी. ऐसा कहने के बाद भीमसेन को हनुमान जी ने मार्ग दिखाया और फिर वहां से अंतर्ध्यान हो गए.

इसलिए जब महाभारत का युद्ध हो रहा था, तो भगवान श्री हनुमान अर्जुन की रथ की ध्वजा पर बैठे रहे और उन्होंने संपूर्ण युद्ध में अपनी मौजूदगी से भीम की सहायता की. और युद्ध की समाप्ति होते हीं वो वहां से चले गए. और उनके रथ पर से जाते हीं अर्जुन का रथ जलकर राख हो गया था.

भगवान हनुमान ने भीम को वरदान तो दिया हीं, साथ हीं उन्होंने भीम के घमंड को भी बहुत हीं चालाकी से चूर-चूर कर दिया. इसलिए कभी भी किसी व्यक्ति को घमंड नहीं करना चाहिए. बल्कि सदैव हर किसी का आदर और सम्मान करना चाहिए.

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