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जब बाल गणपति ने शर्त लगा कर जीता भगवान शिव का ह्रदय.

Bal-Ganesh

महादेव और माता पार्वती के छोटे पुत्र गणेश, श्रीकृष्ण की तरह ही बचपन से चंचल स्वाभाव के थे.

बाल गणपति भी अपनी शरारतों की वजह से श्रीकृष्ण के भांति ही जाने जाते थे. अपने बालपन में गणेश और उनकी नटखट क्रियाओं का उल्लेख गणेश पुराण और ब्रह्मवैवर्त जैसी पुस्तकों में मिलता हैं.

गणपति देव अपनी शरारतों के साथ अपनी कुशाग्र बुद्धि के लिए भी समस्त संसार में जाने जाते थे. गणपति अपनी बुद्धि से कई बार सभी देवताओं की दानवों से रक्षा भी की थी और अपने पिता भगवान् शिव के द्वारा उन्हें सभी गणों में श्रेष्ट कहा जाता था इसलिय उनका एक नाम गणेश भी हैं.

भगवान् गणेश की इसी कुशाग्रता का किस्सा, हम आपको बाल गणपति की आज की कहानी में बतायेंगे.

एक बार की बात हैं,जब भगवान् शिव अपने तप से उठ कर बैठे थे तब सहसा उन्हें एक यज्ञ अनुष्ठान कराने का विचार आया. भगवान् शिव ने अपने मन की बात माता पार्वती को बताई तो माता पार्वती ने भी खुश होकर इस अनुष्ठान के लिए हामी भर दिया. भगवान् शिव ने यज्ञ अनुष्ठान के लिए सभी लोगों को उनकी योग्यता के अनुसार यथोचित कार्य दे दिएं.

भोलेनाथ के आदेश मानते हुए सभी लोग कार्य में लग गए लेकिन गणपति को भगवान् शिव ने अभी तक कोई कार्य नहीं दिया था. अपने पिता द्वारा इस तरह नज़रंदाज़ होने से बाल गणेश को क्रोध आया. तभी माता पार्वती भगवान् शिव के पास आई और कहा कि अनुष्ठान के लिए सभी ज़रूरी कार्य तो पुरे हो जायेंगे लेकिन देवताओं को निमंत्रण देना बाकि हैं. माता पार्वती की बात सुनकर भगवान् शिव बाल गणपति की ओर देखे तभी गणेश ने कहा कि पिता जी मैं यह कार्य कर सकता हूँ.

पिता पुत्र की बात सुनकर माता पार्वती ने कहा कि लेकिन यह ध्यान रहे कि सभी देवताओं को आमंत्रण ऐसे मिलने चाहियें, जिससे उन्हें यह न लगे कि किसी और को पहले आमंत्रित किया गया और हमें बाद में. देवताओं को किसी भी तरह का अपमान महसूस नहीं होना चाहिए और इन से भी सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आमंत्रण उचित समय पर ही मिलना चाहियें. माता पार्वती की बाते सुनकर भगवान् शिव ने गणेश से कहा कि क्या तुम्हे लगता हैं कि तुम यह कार्य बिना किसी त्रुटी के पूर्ण कर पाओगे? तब बाल गणेश ने थोडा खीजते हुए शंकर जी से कहा कि मैं यह कार्य बिना किसी त्रुटी किये कुशलता से कर पाउँगा. भगवान् शिव ने गणेश की बात पर यकीन करते हुआ कहा कि ठीक हैं देखते हैं.

पिता की बात सुनकर गणपति ने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और युक्ति सुझाने लगे कि कैसे सभी देवताओं को यज्ञ अनुष्ठान का निमंत्रण एक साथ सही समय पर मिले. बाल गणेश को सबसे पहले अपने चूहे का विचार आया लेकिन इस बात में यह समस्या थी कि चूहे पर सवारी कर के एक समय पर एक ही स्थान में पंहुचा जा सकता हैं. जैसे ही उन्हें यह बात सही नहीं लगा तो वह दूसरी युक्ति सोचने लगे. कुछ देर बाद बाल गणेश अचानक ही आसन पर बैठ कर भगवान् शिव की पूजा करने लगे.

इसे देखकर भगवान् शिव ने गणेश से पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया तब बाल गणेश ने कहा कि कहा जाता हैं कि आप देवो के देव महादेव हैं और यदि एक ही समय पर सभी देवताओं को बिना त्त्रुटी के आवाहन करना हैं तो क्यों न आप को ही आमंत्रण दिया जाये जिससे सभी देवताओं को एक साथ आमंत्रण भी मिल जायेगा और किसी को बुरा भी नहीं लगेगा.

अपने पुत्र की कुश्ग्रता से खुश होकर शिव ने उन्हें एक नया नाम दिया बुधिप्रिय और कहा कि तुम बुद्धि के देवता के रूप में जाने जाओगे.

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