रक्षाबंधन भाई बहन के प्यार का प्रतीक….
दुनिया में सबसे प्यारा रिश्ता अगर कोई है तो वो है भाई और बहन का रिश्ता. जिनकी बहन होती है वो खुद को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझते है और इसी तरह जिन लड़कियों को भाई का प्यार मिलता है उनसे भाग्यशाली शायद ही कोई होता है.
भाई बहन के प्यार का का त्यौंहार रक्षाबंधन अब बस दो दिन ही दूर है.
रक्षाबंधन से जुड़ी कई कहानियां है कि इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई.
ऐसी ही एक कहानी है जब एक हिन्दू रानी ने अपने मुसलमान भाई को राखी भेजकर अपनी रक्षा करने की गुहार लगाई थी.
उस एक छोटे से धागे की ताकत ये थी कि वो मुसलमान बादशाह अपनी बहन के प्राणों की रक्षा के लिए दौड़ा चला आया.
चलिए आपको बताते है रक्षाबंधन की कहानी रानी कर्णावती और बादशाह हुमायूँ की.
धर्म से ऊपर उठकर भाई बहन के रिश्ते की ये अमर गाथा जो आपके दिल को पिघलाकर रख देगी.
ये घटना करीब 500 साल पहले की है जब चित्तौड़ पर बहादुर शाह गुजरात सुल्तान ने हमला किया था. उस समय चित्तौड़ की गद्दी पर विक्रमादित्य था. विक्रमादित्य एक निकम्मा राजा था और जनता भी उससे घृणा करती थी. उस समय रानी कर्णावती ने चित्तौड़ की गद्दी संभाली. जब बहादुरशाह ने हमला किया तो चित्तौड़ की और किले में रहने वाली औरतों की इज्ज़त की रक्षार्थ रानी ने मुग़ल बादशाह हुमायूँ से रक्षा की गुहार लगाई और सन्देश के साथ राखी भेजी.
मुग़ल बादशाह हुमायूँ वो संदेश पाते ही पूरे दल बल के साथ चित्तौड़ की तरफ बढ़ गया पर हुमायूँ को चित्तौड़ पहुँचने में देर हो गयी, अब हुमायूँ पहुंचा तो रानी कर्णावती जौहर की आग में कूद चुकी थी.
अपनी बहन की मौत देखकर हुमायूँ का क्रोध और भी बढ़ गया और उसके बाद मुग़ल बादशाह ने बहादुर शाह को ना सिर्फ चित्तौड़ से उल्टे पैर दौड़ाया बल्कि बहादुरशाह को दीव तक खदेड़ दिया.
रानी कर्णावती की राखी मिलने के समय हुमायूँ बंगाल में था और राजस्थान पहुँचने में समय लग गया. एक मुसलमान बादशाह होते हुए भी हुमायूँ ने रक्षा बंधन और भाई बहन के रिश्ते का सम्मान किया और बहादुरशाह को हराकर रानी कर्णावती के पुत्र विक्रमादित्य को फिर से चित्तौड़ की गद्दी पर बैठाया.
देखा आपने कितना पवित्र और पाक है ये रक्षाबंधन का त्यौंहार.
एक मुसलमान बादशाह ने एक हिन्दू रानी के लिए दुसरे मुस्लिम राजा से युद्ध किया सिर्फ अपनी बहन को दिया गया वचन निभाने के लिए.