4) काम के मज़े
गप्पें मारते हुए, हँसते-खेलते कब मौशी ने काम ख़त्म कर दिया, पता ही नहीं चला! मैंने उनके साथ पहली बार इतना वक़्त गुज़ारा और लगा जाने कब से दोस्त हैं मेरी! बाद में सोच के देखा तो पाया कि उन्होंने काम को काम की तरह नहीं किया, बल्कि ऐसे किया जैसे कि उन्हें मज़ा आ रहा हो, कोई मस्ती कर रही हों वो| यार होना तो ऐसे ही चाहिए ना? काम को बोझ समझ के किया तो क्या खाक़ काम किया?