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अब खाना खरीदिए काला बाज़ार से! तैयार हैं आप??

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हम कृषि प्रधान देश के निवासी हैं लेकिन जल्द ही हमारे देश में वो दिन आने वाले हैं कि अन्न का उत्पादन कम होगा और उसका आयात ज़्यादा|

कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले दिनों में गेहूं-चावल की कालाबाज़ारी बढ़ने लगे और हम आप नज़र आयें दुगुने-तिगुने दामों में घर का राशन काला बाज़ार से खरीदते हुए |

असंभव सा लग रहा है आपको?

नहीं, जिस प्रकार से हमारी सरकार किसानों और खेती के मुद्दों का संचलन कर रही है, वो दिन दूर नहीं जब खेती के लिए न तो ज़मीन रहेगी और न खेती करने वाले किसान!

आए दिन अखबारों में किसानों की आत्महत्या के बारे में तो सुनते ही रहते हैं|

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बुरे मौसम, उधार के बोझ और सरकारी मदद से महरूम यह ग़रीब किसान जीने की चाह छोड़ चुके हैं| शायद आप सोच रहे होंगे कि लाखों किसानों में से थोड़े बहुत कम भी हो गए तो क्या फ़र्क पड़ेगा पर सच यही है कि हर एक किसान खेती के लिए ज़रूरी है| एक तो यूँही बहुत से लोग खेती-बाड़ी छोड़ गाँव से शहर कि तरफ पलायन कर जाते हैं ताकि ज़िंदा रहने लायक जीविका कमा सकें| जो पीछे रह जाते हैं, अगर उन्हें भी खेती की कीमत अपनी जान से चुकानी पड़े तो कौन करना चाहेगा खेती-बाड़ी? कौन से बच्चे अपने स्वर्गीय पिता के क़दमों पर चलते हुए खेती में मेहनत करेंगे? वो तो यही चाहेंगे कि ज़मीन बेची जाए और कोई व्यापार खोल लें!

और अब तो ऐसा लगने लगा है जैसे मोदी सरकार यही चाहती है! किसानों की भलाई के लिए कुछ सुनने में नहीं आता| बस बड़े-बड़े उद्योगपतियों के लिए ज़मीन अधिकरण बिल कैसे पास हो सके ताकि खेती लायक ज़मीन पर भी फैक्ट्री लग जाएँ, इसी की चर्चा सुबह-शाम चलती रहती है!

आज अगर सरकार ने किसानों की मदद के लिए सही कदम नहीं उठाये तो वो दिन दूर नहीं जब किसान खेती करने से ही मना कर देगा! सोच के देखिये, उस दिन हमारा पेट भरने के लिए राशन विदेशों से आयात करना पड़ेगा| हर कोई शायद महंगा राशन इस्तेमाल करने की क्षमता न रखता हो और चुनिंदा लोग ही ठीक से अपना पेट भर पायेंगे|

आशा है कि सरकार अपनी नीतियां ठीक से बनाये ताकि उद्योगपतियों के साथ-साथ हमारे किसान भाइयों का भी भला हो, उन्हें भी एक इज़्ज़तदार खुशहाल ज़िन्दगी जीने का मौका मिल सके!

आइए एक ऐसे देश की कामना करें जहाँ किसी किसान को अन्न उगाने की सज़ा आत्महत्या करके न चुकानी पड़े!