हमारे देश में किन्नरों को हिजड़ा या छक्का कहकर बुलाया जाता है.
लेकिन कोई ये नहीं सोचता है कि किन्नर भी आखिर एक इंसान ही है. किन्नर को हमेशा से ही लोग हीन भावना से देखते हैं और अगर वो कहीं नज़र भी आ जाते हैं तो उन्हें देखकर लोग कन्नी काटने लगते हैं.
ये तो रही किन्नर के तिरस्कार की बात लेकिन जरा सोचिए, अगर किसी किन्नर को सार्वजनिक स्थान पर टॉयलेट जाना पड़ जाए, तो ऐसे में वो किस टॉयलेट में जाए पुरुषों के या फिर महिलाओं के.
दरअसल एक ऐसा ही वाकया सामने आया है विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में.
भले ही यह देश सबसे ताकतवर होने का दम भरता हो लेकिन आज भी इस देश में नस्ल, रंग, जेंडर और धर्म के नाम पर भेदभाव किया जाता है.
अमेरिका के वर्जीनिया में रहनेवाले 18 साल के गेविन ग्रिम एक ट्रांसजेंडर हैं. गेविन की मानें तो उन्होंने 2014 में वर्जीनिया के ग्लैसेस्टर हाई स्कूल में अपना सेकेंड इयर शुरू किया था.
परिवार वालों और डॉक्टरों की सलाह पर गेविन ने अपना नाम बदल लिया और एक लड़के के रुप में रहना शुरू कर दिया. शुरु में उसने लड़कों के रेस्ट रुम का इस्तेमाल किया.
दो महीने तक कोई रोक टोक नहीं हुई, लेकिन बाद में दूसरे बच्चों के पैरेंट्स और कुछ लोगों ने शिकायत करनी शुरू कर दी कि लड़कों के रेस्ट रुम को एक लड़की इस्तेमाल कर रही है.
इसके बाद स्कूल के एडमिनिस्ट्रेशन ने उसे लड़कों का बाथरुम इस्तेमाल करने से रोक दिया और उसे यूनीसेक्स रेस्टरुम इस्तेमाल करने की हिदायत दी.
गेविन ने इसे मानवीय अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए स्कूल के खिलाफ केस किया.
शुरु में तो केस खारिज कर दिया गया. बाद में अमेरिका की एक अदालत ने कहा वो केस कर सकते हैं. जिसके बाद गेविन ने वहां की एक जिला अदालत में केस किया.
जिला अदालत ने उनके पक्ष में फैसला दिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने केस स्वीकार कर लिया है. ग्रिम का कहना है कि स्कूल बोर्ड ने उनके साथ ठीक नहीं किया.
बहरहाल ये तो सिर्फ एक ट्रांसजेंडर की दास्तान सामने आई है लेकिन दुनियाभर में कई ऐसे ट्रांसजेंडर हैं जो लोगों के ज़रिए तिरस्कार झलने के लिए मजबूर हैं.
लेकिन यहां ट्रांसजेंडर यानी किन्नरों से भेदभाव रखनेवाले उन तमाम लोगों से एक सवाल है कि अगर कोई ट्रांसजेंडर पैदा हुआ है तो इसमें उसका क्या दोष है. ट्रांसजेंडर हुए तो क्या वे भी तो आखिर एक इंसान ही हैं और उन्हें भी समाज में आम इंसानों की तरह जीने का अधिकार है.