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बुर्क़े में क्या छुपाते हैं मुसलमान? अपनी औरतें या कुछ और?

muslims-burqas

इस्लामिक संस्कृति में आज बहुत सी महिलाओं को देखा जा सकता है बुर्क़ा पहने हुए, क्योंकि यह इस्लामिक पहनावे का एक हिस्सा है!

अब यह अपनी मर्ज़ी से, श्रद्धा से पहना जाता है, या ज़बरदस्ती पहनाया जाता है, इस बात का फैसला करना ज़रा मुश्किल है, क्योंकि बहुत कम मुस्लिम औरतें हैं जो इस बारे में खुल के बात करना चाहती हैं!

जो लोग औरतों को बुर्क़ा पहनाये जाने के पक्ष में हैं (बुर्क़े का क़ानून अफ़ग़ानिस्तान से आया है, ऐसा कहा जाता है), वे इस के लिए क़ुरान और अपने नबी की हिदायतों का हवाला देते हैं! उन का कहना है कि क़ुरान में ऐसा कहा गया है कि औरत को बुर्क़े में रहना चाहिए!

बुर्क़ा एक कपड़ों के ऊपर पहना जाने वाला लम्बा चोगा किस्म का वस्त्र होता है जो कि मिडिल ईस्ट के देशों, और कई दुसरे मुस्लिम देशों की औरतें घर से निकलने से पहले पहनती हैं! और उसे बिना पहने बाहर निकलना इस्लाम की तौहीन माना जाता है!

इसलिए कई जगह औरतों को ज़बरदस्ती भी बुर्क़ा पहनाया जाता है और न पहनने पर उन को प्रताड़ित किया जाता है और मारा पीटा भी जाता है!

अब सवाल ये है, कि आखिर बुर्क़ा इतना ज़रूरी क्यों है? वो भी आज के प्रगतिशील संसार में जब कि महिलायें आगे बढ़चढ़ कर हर क्षेत्र में हिस्सा लेना चाहती हैं, तो क्या बुर्क़ा उनकी क़ाबलियत और उनके सपनों के बीच बाधा नहीं बनेगा?

आख़िर ऐसा क्या है जो मुसलमान भाई इस बुर्क़े के पीछे छुपने की कोशिश कर रहे हैं?

आइए देखें क़ुरान क्या कहता है बुर्क़े के बारे में!

सब से पहले तो आप को यह जान कर हैरानी होगी की क़ुरान में बुर्क़ा शब्द ही नहीं है! क़ुरान में हिजाब का ज़िक्र है जिस का मतलब बहुत ही अलग है क़ुरान के मुताबिक| अरबी शब्द हिजाब का मतलब है परदा या विभक्त करने वाला कोई वस्त्र! हिजाब शब्द क़ुरान में सात बार आता है, जिस में से पाँच बार उसे हिजाब ही लिखा गया है और 2 बार हिजबान लिखा गया है (देखें 7:46, 17:45, 19:17, 33:53, 38:32, 41:5, 42:51) और इस में से किसी का भी मतलब ऐसा नहीं निकल कर आता है जिसे आज के मुस्लिमऔरतों का पहनावा या बुर्क़ाकहते हैं! क़ुरान में लिखे गये हिजाब का औरतों के पहनावे से कुछ भी लेना देना नहीं है!

तो फिर बुर्क़ा आया कहाँ से?

ये इस पर निर्भर करता है कि आप किस से पूछ रहे हैं! इस्लामिक समाज में बुर्क़े के इस्तेमाल पर बहुत वाद-विवाद है!

क़ुरान में औरतों और मर्दों दोनो को ही सभ्य तरीके से कपड़े पहनने की हिदायत दी गयी है! जिसे आज के मॉडर्न मुसलमान लगभग भुला चुके हैं और सिर्फ़ औरतों पर ही इस का इस्तेमाल करते हैं! वे कहते हैं कि बुर्क़ा पहनाए जाने का हक़ मोहम्मद के युग से आता है, तब की एकत्र परंपराओं के अंतर्गत! यहाँ ये बताना भी ज़रूरी है की “एकत्र परंपराओं” की इस्लाम में कोई जगह नहीं है! जो लोग बेसिर-पैर के नियम लागू करते हैं और उन्हें मानने पर औरों को मजबूर करते हैं, उन्हें दरअसल असल इस्लाम की सीखों और उनकी सच्चाई के बारे में कोई जानकारी है ही नहीं!

क़ुरान के मुताबिक, औरतों का पहनावा ऐसा होना चाहिए जो उनके शरीर के उपरी हिस्से को अच्छे से ढकता हो, लंबा हो, भड़कीला ना हो! (देखें 24:31, 33:59 और 7:26)

कहीं भी सिर आँखों और शक्ल को ढकने की बात क़ुरान में नहीं की गयी है! क़ुरान में तो इस बात तक का ज़िक्र है कि कोई भी इंसान हिजाब के पीछे से खुदा से बात नहीं कर सकता है! हिजाब में से निकल कर ही खुदा से नाता जोड़ा जा सकता है!

तो फिर औरतों के लिए हिजाब या बुर्क़ा क्यों?

बुर्क़े को पहनाए जाने का तर्क़ “खिमार” के रूप में भी सामने आता है, जो की एक अरबी शब्द है और जिस का मतलब है परदा! इस शब्द से भी कहीं भी यह मालूम नहीं होता है, कि औरतों को सिर से ले कर पावं तक अपनेआप को ढक कर ही बाहर निकलना चाहिए!

तो क्या बुर्क़ा पुरषप्रधान समाज की ही एक और देन है जिस के पीछे अपनी संकीर्ण सोच को छुपाया जा रहा है?

औरतों को बुर्क़ा और छोटी बच्चियों को हिजाब पहनने के लिए मजबूर करने वाले मर्द शायद ये नहीं जानते कि वो एक जुर्म कर रहे हैं! या तो उन्होंने क़ुरान पूरी तरह से पढ़ा ही नही है, या फिर उसे ठीक से समझा नहीं है!

खुद से बने बैठे नबीयों, मुफ्तियों और धर्म के ठेकेदारों की बातों को सुन कर, उनकी दी हुई धमकियों से डर कर, अपनी ज़िंदगी के फ़ैसले लेने वाले लोग, क़ुरान की असल सीख को जानते ही नहीं हैं! और ये मुफ़्ती लोग किसी भी इंसान को सोचने और समझने की इजाज़त देते ही नहीं हैं! उनके सोचने और समझने की ताक़त को झूठे डर दिखा कर तोड़ दिया जाता है!

बुर्क़ा किसी भी औरत को नहीं छुपाता है, बल्कि मर्दों की बदनीयती और खुद पर संयम ना रख पाने वाली गंदी सोच को छुपाता है!

कोई भी कपड़ा पहनने या ना पहनने का हक़ इंसान का खुद का होना चाहिए! आज़ादी हर एक का समान अधिकार है, फिर चाहे वो औरत हो या आदमी!

औरतों की आज़ादी को बुर्क़े के पीछे आज भी क्यों छुपाया जा रहा है?