हमारे देश के अलग-अलग इलाकों में कई ऐसी परंपराएं हैं जो सदियों से चली आ रही है. इन पुरानी परंपराओं का पालन करने के पीछे अक्सर कोई ना कोई मकसद छुपा होता है.
भारत की इन्हीं परंपराओं में से एक मानी जाती है जल्लीकट्टू खेल की परंपरा. हर साल पोंगल के त्योहार पर दक्षिण भारत के तमिलनाडु में सैकडों सालों से जल्लीकट्टू खेल की परंपरा चली आ रही है.
लेकिन इन दिनों इस खेल पर लगी पाबंदी को लेकर राज्यभर में विरोध प्रदर्शन जारी है. लगातार कई दिनों से जारी इस विरोध प्रदर्शन में उतरे लोगों की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस सैकडों साल पुरानी परंपरा पर लगाए हुए प्रतिबंध को वापस लिया जाए.
इस पूरे जन आक्रोश के बीच सबसे पहले हम आपको बताने जा रहे हैं कि जल्लीकट्टू आखिर है क्या और इस परंपरा के पीछे कौन सा मकसद छुपा हुआ है.
जल्लीकट्टू में होता है सर्वश्रेष्ठ सांड का चुनाव
जल्लीकट्टू की ये सैकड़ों साल पुरानी परंपरा इसलिए चली आ रही है ताकि इस पंरपरा के जरिए देशी गौवंश का उन्नत सरंक्षण किया जा सके.
जल्लीकट्टू खेल की इस परंपरा का वास्तविक उद्देश्य है हर गांव में एक उन्नत प्रजाति के सांड का चुनाव करना. ताकि इससे गौवंश की उन्नत प्रजाति विकसित होती रहे.
इसमें जिस सर्वश्रेष्ठ सांड का चुनाव होता है, उसे कोविल कालाई यानी मंदिर का सांड कहते हैं जिसका भरण पोषण मंदिर के संसाधनों से ही किया जाता है.
बताया जाता है कि जिस गाय को सबसे अधिक दूध होता है उसी के बछड़े को पवित्र नंदी मानकर कोविल कलाई के लिए तैयार किया जाता है. कोविल कालाई के चुनाव के बाद जो भी बछड़े बच जाते हैं उन्हें खेती के अलावा दूसरे कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
जल्लीकट्टू खेल की शुरूआत में सबसे पहले इसी पवित्र कोविल कालाई को छोड़ा जाता है, जिसे रोकने के बजाय लोग हाथ जोड़कर उसे नमस्कार करते हैं. इसके बाद ही दूसरे सांड छोड़े जाते हैं और इन्हीं में से अगले कोविल कालाई का चुनाव किया जाता है.
एक उन्नत प्रजाति के सांड को चुनने के लिए सालों से इस परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है. जिसमें जानवरों के साथ किसी भी तरह के अत्याचार के लिए कोई स्थान नहीं है.
जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध से लोगों में आक्रोश
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पोंगल के वक्त खेले जानेवाले जल्लीकट्टू पर रोक लगा दी है. पशुओं के अधिकारों की रक्षा करने का काम करनेवाली संस्थाओं ने इस खेल को जानवरों के लिए हानिकारक बताया है.
वहीं तमिलनाडु की जनता इसे अपनी संस्कृति का अहम हिस्सा बताते हुए इस प्रतिबंध को वापस लेने की लगातार मांग कर रही है.
इस खेल पर प्रतिबंध लगाने के पीछे यह दलील दी गई है कि जल्लीकट्टू सांडों का खेल है जिसमें उनके सींग पर कपड़ा बांधा जाता है. जो खिलाड़ी सांड के सींग पर बंधे हुए इस कपड़े को निकाल लेता है उसे ईनाम के रुप में सिक्के या पैसे दिए जाते हैं.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई इस पाबंदी के खिलाफ लोगों में काफी आक्रोश देखा जा रहा है. पूरे राज्य की जनता सड़कों पर उतर आई है और तो और दक्षिण भारत के कई कलाकार भी इस खेल से पाबंदी हटाने की मांग कर रहे हैं.