ग्रीन पटाखें – इस बार दीपावली पर बम धमाके और लड़ियों की आवाज आपके कानों को सुन्न नहींकर पाएगी. क्योंकि दीवाली आई नहीं कि पटाखों का सीजन शुरु हो जाता है.
वहीं दूसरी तरफ हवा में जहरीले धुंए और बेतहाशा शोर को रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट में पटाखों को लेकर सवाल-जवाबों का सिलसिला भी शुरु हो गया है. इस बार सुप्रीम कोर्ट ने दीवाली के दिन 2 घंटे ही पटाखे फोड़ने और प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर रोक लगा दी है. वहीं उच्चतम न्यायालय ने प्रदूषण रोकने के लिये देशभर में पटाखों की मैन्यूफैक्चरिंग और बिक्री के लिये दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं. कोर्ट ने कम प्रदूषण फैलाने वाले और ग्रीन पटाखों को ही बेचने और रात 8 से 10 बजे तक जलाने की अनुमति दी है. वहीं कोर्ट ने मंगलवार को ई-कॉमर्स वेबसाइट्सको पटाखों की बिक्री करने पर रोक दिया है. जस्टिस ए के सीकर और जस्टिस अशोक भूषण की पीठ ने कहा कि केवल लाइसेंसधारी ही पटाखे बेच पाएंगे साथ ही लड़ी वाले पटाखों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. पीठ ने आदेश दिया है कि जिन पटाखों में 60 डेसिबल से अधिक की क्षमता होगी वो आप इस दीपावली नहीं छोड़ पाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने जिस ग्रीन पटाखों के बारे में बात की है. क्या आप उनके बारे में जानते हैं शायद नहीं.
तो चलिए आज हम आपको बताते हैं क्या है ग्रीन पटाखें और क्यों अलग है ये आम लोकल पटाखों से?
क्या हैं ग्रीन पटाखे?
दरअसल CSIR के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा फॉर्मूला बनाया है जिसे ग्रीन पटाखों की श्रेणी में रखा जा सकता है. इन ग्रीन पटाखों का उत्सर्जन कम है और इन पटाखों में धूल को सोखने की क्षमता भी है. ये पटाखे लोकल पटाखों जैसे ही दिखते हैं लेकिन इनके जलने पर प्रदूषण कम होता है. सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखों को जलाने से 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा होती हैं. साथ ही ग्रीन पटाखों से निकलने वाले धुएं में सल्फर और नाइट्रोजन के कण इन पटाखों से निकलने वाले पानी के अणु में घुल जाएंगे और धूल – खतरनाक कणों को कम करने में मदद मिलेगी.
पांरपरिक पटाखें और ग्रीन पटाखें में अंतर-
- ग्रीन पटाखें जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे जिसकी वजह से सल्फर और नाइट्रोजन जैसे कण इसमें ही घुल जाएंगे. क्योंकि CSIR के वैज्ञानिकों का मानना है कि पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतरीन उपाय है.
- CSIR ने इन पटाखों को ‘स्टारक्रैकर्स’ कहा है. क्योंकि इन पटाखों में ऑक्सीडाइजिंग एजेंट का इस्तेमाल होता है. जिसकी वजह से ये ग्रीन पटाखें फूटने के बाद कम मात्रा में नाइट्रोजन और सल्फर की मात्रा पैदा करते हैं. इनको बनाने में खास तरह के केमिकल्स का उपयोग किया जाता है.
- ग्रीन पटाखों में लोकल पटाखों की तुलना में 50% कम एल्यूमीनियम का उपयोग किया जाता है. इसे संस्थान ने सेफ़मिनिमलएल्यूमीनियम यानी SAFALका नाम दिया है.
- इन ग्रीन पटाखों को आप अरोमाक्रैकर्स भी कह सकते हैं क्योंकि इन्हें जलाने के बाद हानिकारक गैस कम पैदा होती है बल्कि इनसे बेहतर खूशबू निकलती है.
बाजारों में नहीं है उपलब्ध
फिलहाल में ग्रीन पटाखों से जुड़े फॉर्मूले का तमिलनाडु के शिवाकाशी में सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा चुका है. शिवाकाशी ग्रीन पटाखों को बनाने का केंद्र हैं. लेकिन अभी भारत के बाजारों में ग्रीन पटाखे मिलने में वक्त लग सकता है. CSIR वैज्ञानिकों का कहना है कि संस्थान का शोध पूरा हो चुका है. अब फॉर्मूला सरकारी एजेंसियों के पास है. जब तक पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संस्थान (PESO) इसे अप्रूव नहीं करता है तब तक हम ग्रीन पटाखों को बाजार में नहीं उतार सकते हैं.
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल की बात कही है उसकी खोज भारत में ही हुई है अभी तक दुनिया में किसी भी देश ने इन पटाखों का इस्तेमाल नहीं किया है.
अगर ये ग्रीन पटाखें मार्केट में उतारे जाते हैं तो ये ग्रीन पटाखें दुनिया को एक नई दिशा दे सकेंगे.