जीवन शैली

अबॉर्शन के बाद उस अजन्मे बच्चे का क्या होता है, जानकर आपकी रूह कांप उठेगी !

अबॉर्शन के बाद – मां बनने का सपना हर महिला देखती है.

मां का प्यार इस जहां में सबसे सच्चा और अपरंपार है. लेकिन क्या इस बात का अंदेशा भी कोई कर सकता है कि जब उस मां के बच्चे को मौत के हवाले कर दिया जाए तो वो मां अ उस असहनीय पीड़ादायक दर्द को कैसे बर्दाश्त कर सकती होगी ?

क्या आप सोच सकते हैं जब किसी मां के अजन्मे बच्चे को उसकी कोख में ही दर्दनाक मौत दे दी जाए तो उस मां पर क्या बीतती होगी ? क्या आप सोच सकते हैं कि वो मासूम सा बच्चा जिसकी धड़कन अभी शुरु हुई है, जो अभी दुनिया में आया भी नहीं है, उस बच्चे को जब अबॉर्शन के द्वारा मौत के हवाले कर दिया जाता है तो उस नन्हे से मासूम को कितनी तकलीफ होती होगी ?

लेकिन क्या अबॉर्शन की सलाह देने वाले और इस कुकर्म को अंजाम देने वालों में से किसी भी इंसान में इंसानियत नाम की कोई चीज होती है ?

हम इंसान सिर्फ इसलिए बच्चे को गिरा देने की सलाह दे देते हैं या फिर उसे गिरा देते हैं या फिर कुछ ऐसे होते हैं जिन्हें उन दिनों बच्चे की चाहत नहीं होती या फिर कई बार ऐसा भी होता है की कुंवारी लड़कियां जब प्रेग्नेंट हो जाती है तो समाज के डर से भी वो अपना अबॉर्शन करा लेती है.

आज हम आपको उस अजन्मे बच्चे और उस मां के दर्द को बता रहे हैं जिसका एहसास तो शायद हममें से कई लोगों को हो लेकिन मुझे नहीं लगता कि ज्यादातर लोगों को उस तकलीफ का थोड़ा भी एहसास होगा. अगर ऐसा होता तो जितनी बड़ी संख्या में अबॉर्शन को अंजाम दिया जाता है वो नहीं होता. मुझे उम्मीद है कि आपमें से जितने भी लोग इसे पढ़ रहे हैं, उनमें से कुछ तो होंगे जिनके दिल को हमारी बातें छू जाएगी. और वो इस घिनौने करतूत को समाज से खत्म करने में अपनी भागीदारी निभाएंगे.

कुछ समय पहले की बात है जब एक फिलिसिया कैश नाम की उस मां ने अपना एक्सपीरियंस बताया जिसने अपनी कोख में पल रहे बच्चे को खो दिया. उस मां ने अपने इमोशनल और असहनीय फिजिकल दर्द को बयान करते हुए बताया कि उस पीड़ा को आम इंसान शायद ही समझ पाए.

सोशल मीडिया के जरिए फिलिसिया ने विस्तार से अपने दर्द को बयां किया है.

उनका कहना है कि एबॉर्शन कोई साधारण नहीं बल्कि बहुत ही अधिक कष्टप्रद प्रक्रिया होता है जिसके दौरान मां को तो तकलीफ होती ही है, लेकिन उस बच्चे की तकलीफ का क्या जिसकी धड़कनें चल रही होती हैं, जिसकी सांसे चल रही होती हैंं, वो बच्चा जो अभी मां की कोख में पल रहा है, इस दुनिया में आया भी नहीं है उस मासूम से बच्चे की कोख में ही निर्मम हत्या कर दी जाती है. उस हत्या के दौरान उस बच्चे को कितनी तकलीफ होती है.

आगे वो बताती हैं कि हममें से ज्यादातर लोग ये सोच बैठते हैं कि मां की गर्भ में बच्चे के आने के कुछ हफ्तों के बाद ही बच्चे की धड़कन विकसित होती है. लेकिन हर किसी की ये सोच पूरी तरह गलत है. सच्चाई तो ये है कि गर्भ में बच्चे के आने के साथ ही बच्चे की धड़कन सबसे पहले विकसित होती है जिसकी वजह से बच्चे के शरीर में ब्लड का फ्लो बनता है.

फिलिसिया ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट शेयर करते हुए बताया कि गर्भपात के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे के साथ क्या होता है. उन्होंने अपने दर्द को बयां करते हुए पोस्ट में लिखा है कि साल 2014 जुलाई की बात है जब मिसकैरेज की वजह से मैंने अपने बच्चे को खोया था. मिसकैरेज की वजह से 14 हफ्तों और 6 दिन का मेरा मासूम सा वो बेटा मौत के मुंह में समा गया था.

मात्र 14 हफ्तों में ही आश्चर्यजनक रूप से मेरा प्यारा बेटा बहुत विकसित हो गया था.

उसके शरीर में छोटी छोटी नशें मेरे बच्चे की पतली सी स्किन के जरिए आसानी से दिख रहे थे जिसके द्वारा बच्चे के शरीर में ब्लड का फ्लो बना रहता था. उसके पैरों के अंगूठे और उंगलियां भी बन गए थे. इतना ही नहीं मेरे इस प्यारे से बच्चे की मांसपेशियां भी दिख रही थी. मैं आप सबसे ये बताना चाहती हूं कि गर्भावस्था की उस अवधि के दौरान वो ना सिर्फ एक कोशिकाओं का समूह या फिर मांस का टुकड़ा मात्र था बल्कि मेरे बच्चे का पूरा शरीर इंसान जैसा दिखने लग गया था. वो बहुत ही स्वस्थ और खूबसूरत बच्चा था जिसे ईश्वर ने बनाया तो था इस दुनिया में लाने के लिए लेकिन वो इस दुनिया में आ नहीं पाया.

फिलिसिया आगे बताते हुए कहती है कि मैं इस पोस्ट को इसलिए लिख रही हूं ताकि हर किसी के पास इसकी सही जानकारी पहुंच सके जो ये नहीं जानते कि गर्भावस्था के 3 महीने के दौरान भ्रूण गर्भ में पूरी तरह से विकसित हो चुका होता है. इस वजह से किसी को भी 3 महीने में गर्भपात गलती से भी नहीं करानी चाहिए. हर किसी से मैं ये जानकारी शेयर करना चाहती हूं कि गर्भावस्था के 3 महीने की अवधि के दौरान गर्भ में बच्चा विकसित हो चुका होता है.

गर्भधारण के 16 दिन बीतते ही बच्चे का दिल धड़कने लग जाता है और ब्लड को पम्प करने लग जाता है.

आप यूं समझ लेंं कि जब तक महिला को इस बात का पता चले कि वो गर्भवती है उससे पहले ही बच्चे का दिल अपना काम करने लग जाता है. लेकिन ज्यादातर लोगों में ये धारणा बनी हुई है कि जब तक हमें बच्चे की धड़कन सुनाई नहीं देती वो विकसित नहीं होता है. जबकि ये पूरी तरह गलत है बता देना चाहेंगे कि सबसे पहले बच्चे का दिल ही धड़कना शुरू होता है फिर उसके बाद ही पूरी प्रक्रिया शुरू होती है. गर्भधारण के 6 हफ्ते बीतने के बाद बच्चे के कान बनने शुरू होते हैं जबकि सातवें हफ्ते में उनके तंत्रिका तंत्र काम करने की शुरुआत करते हैं.

उन्होंने ये भी बताया कि इस जानकारी को हर कोई मेडिकल जर्नल्स, इंटरनेट या फिर प्रेगनेंसी गाइड के द्वारा आसानी से प्राप्त कर सकते हैं.

मुझे उम्मीद है कि मेरे द्वारा दी गई ये जानकारी और मेरे बच्चे की इन दर्दनाक तस्वीरों के जरिए मैं आप सबको ये समझा सकूं कि अबॉर्शन की वजह से उस बच्चे को कितनी तकलीफ झेलनी पड़ती होगी.  अंत में वो लिखती हैं कि अगर आप में से कोई भी गर्भपात कराने की सोच रहे हैं तो अपनी सोच को पूर्ण विराम दें. उस पर एक बार नहीं कई बार विचार करें. मैं आपको कमजोर नहीं बना रही या फिर किसी की निंदा करने की कोशिश नहीं कर रही. ये अपील उस मां की है जिसने मिसकैरेज की वजह से अपने बच्चे को खोया है. जरा सोचिए गर्भपात कराने के सिवाय और भी कई विकल्प इस जहां मे हैं.

इस बात को तो हम सभी जानते हैं कि एक औरत अपने आप को परिपूर्ण तभी मानती है जब वो मां बनती है. मां बनना हर औरत के लिए उसकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत और खुशनुमा पल होता है. लेकिन जब उसी मां की कोख से ही उसके बच्चे को मौत के मुंह उतार दिया जाता है तो उस मां पर क्या बीतती होगी क्या कोई उस दर्द को महसूस कर सकता है.

बता दें कि जब किसी का अबॉर्शन होता है तो उसे सैलाइन अबॉर्शन कहते हैं. ये काफी दर्दनाक प्रक्रिया होता है. इंजेक्शन की सहायता से मां के गर्भ में एक ऐसा लिक्विड दिया जाता है जिसकी वजह से बच्चे की मृत्यु हो जाती है. ये लिक्विड इतना असरदायक होता है कि गर्भ में बच्चे के स्किन और फेफड़े पूरी तरह जल जाते हैं और बच्चा मौत के मुंह में समा जाता है और फिर बच्चे की दर्दनाक मौत के बाद मां का प्रसव करा दिया जाता है. फिर बच्चे को मार कर उसे कोख से बाहर कर दिया जाता है. लेकिन सोचने वाली बात है कि इस दौरान अगर बच्चा बच जाए तो उस बच्चे का, जो कि अविकसित है इलाज नहीं हो पाता और ना ही किसी तरह का कोई देखभाल. ऐसे में बच्चे को यूंही छोड़ दिया जाता है मरने के लिए. क्या उस दर्द का अनुभव कोई कर सकता है ?

उम्मीद है कि इस पूरी बात को जानने के बाद आप ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जिससे आपको अबॉर्शन जैसी नौबत तक पहुंचना पड़े. उससे पहले ही सावधानी बरतें और किसी ज़िंदगी को इस तरह दर्दनाक मौत ना दें.

Khushbu Singh

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