शनि के प्रकोप से कौन नहीं डरता है.
कहते हैं कि शनि अगर किसी पर हावी हो जाए तो उस व्यक्ति का जीना हराम हो जाता है.
सफलता दूर-दूर तक कहीं भी नजर नहीं आ रही होती है.
ऐसा ही कुछ एक बार भगवान हनुमान जी के साथ हुआ था. शनि से टकराव हो गया और शनि ने गुस्से में हनुमान जी का हाथ पकड़ लिया था. पहली बार तो हनुमान जी ने हाथ जैसे-जैसे करके बचा लिया था किन्तु तब शनि को और गुस्सा आ गया ठौर उसने तब दूसरी बार बड़े क्रोध में हनुमान जी का हाथ पकड़ लिया ताकि वह हनुमान जी को दंड दे सके लेकिन क्या आप जानते हैं तब क्या हुआ?
हनुमान जी ने खुद को कैसे बचाया?
तो आइये इस पूरी घटना को जानने और समझने के लिए हम यह पूरी कथा पढ़ते हैं जो रामायण में लिखी गयी है.
क्या हुआ जब शनि को क्रोध आया
एक जगह पौराणिक कथा बताती है कि हनुमान जी शाम को बैठकर राम नाम जप रहे थे. तभी शनि हनुमान जी को इस मुद्रा में देख उनकी ओर बढ़ा और वह चाहता था कि आज वह हनुमान जी को दंड दे.
हनुमानजी के पास पहुँचते ही शनि बहुत ही अहंकारपूर्ण, कटुवाणी में बोले-“हे वानर! परम् शक्तिशाली शनि तुम्हारे सामने खड़ा है. ध्यानावस्था का पाखंड छोड़ो और मुझसे युद्ध करने के लिये तैयार हो जाओ.”
यह कथा तबकी बताई जाती है जब रामायण युद्ध खत्म हो चुका था किन्तु रामायण तब लिखी नहीं गयी थी.
तो शनि के वचन सुनकर हनुमान जी बहुत ही प्यार से बोले “हे परम पराक्रमी शनि! मैं बूढ़ा हो गया हूँ. सदैव अपने प्रभु का ध्यान-स्मरण करता रहता हूँ. इस कार्य में कोई विघ्न मेरे लिये असहनीय हो जाता है. मुझे प्रभु का ध्यान करने दीजिये.”
तब शनि ने अपने अहंकार में आकर हनुमान जी को डरपोक बोल दिया और वह हनुमान जी का हाथ पकड़ लेता है.
पहली बार जब शनि यह काम करता है तो हनुमान जी सहन कर लेते हैं किन्तु जब दूसरी बार ऐसा होता है तो भगवान समझ जाते हैं कि यह इस तरह मानने वाला नहीं है.
तब हनुमान जी शनि को अपनी पूछ में लपेट लेते हैं और अपनी पूरी शक्ति के साथ दौड़ लगा कर राम सेतु की परिक्रमा करने लगते हैं. परिक्रमा करते समय अपनी पूँछ को बार-बार जारे से पत्थरों पर पटकते. अपने आप को परम तेजस्वी, परम पराक्रमी कहने वाले अहंकारी शनि बंधन से मुक्ति पाने का प्रयास करते रहे. लेकिन उनकी शक्ति ने उनका साथ नहीं दिया.
बंधन की पीड़ा, शिलाखण्डों की चोट से परेशान, लहू-लुहान शनि देव कराहने लगे. शारीरिक पीड़ा के कारण अहंकारी, उदण्ड शनि भयभीत होकर कातर स्वर में पुकार करने लगे. “हे महावीर! हे मर्कटाधीश! मुझे मुक्त कीजिये. मेरा शरीर लहू-लुहान हो गया है.”
शनि पर तेल अर्पित करने की शुरुआत
तब हनुमान जी दया करके शनि को छोड़ देते हैं और और शनि लहूलुहान होकर हनुमान जी के सामने बैठ जाता है.
इस दशा में हनुमान जी शनि को शरीर पर लगाने के लिए तेल देते हैं. इससे शनि को आराम मिलता है. बाद में रास्ते में जाते वक़्त दुसरे जो भी लोग शनि को चोटों पर लगाने को तेल दे देता है वह उसे आशीर्वाद देते जाते हैं.
तभी से यह कहा जाता है कि शनि कभी भी हनुमान जी के भक्तों को शनि परेशान नहीं कर सकता है और शनि जी को तेल अर्पित करने की विधा भी यहीं से प्रारंभ मानी जाती है.
तो अब अगर आप रोज हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं तो भूल जाये कि शनि आपको परेशान कर सकते हैं.
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