कुरुक्षेत्र में अनेकों योद्धाओं के बीच होने वाले महाभारत के विषय में तो हर कोई भली-भांती जानता है.
जिसमें कौरवों की विशाल सेना को पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की मदद से पराजित किया था. लेकिन हममें से बहुत कम लोग हीं ऐसे हैं जिन्हें इस बात की जानकारी है कि महाभारत युद्ध के बाद क्या हुआ तथा जब युधिष्ठिर राजा बने तो कितने वर्षों तक उन्होंने राज किया इत्यादि.
आइए जानते हैं महाभारत युद्ध के बाद के उन रोचक रहस्यों के बारे में.
महाभारत युद्ध के बाद –
महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर को हस्तिनापुर के राजा के रूप में घोषित किया गया. जिस समय युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था उसी समय गांधारी अपने सभी पुत्रों की मृत्यु के शोक से बेचैन और व्याकुल होकर भगवान श्री कृष्ण के पास आईं और उन्हें श्राप दे दिया. गांधारी ने भगवान कृष्ण को श्राप देते हुए कहा कि – “हे कृष्ण जिस तरह तुमने मेरे कुल का नाश किया, उसी तरह तुम भी अपने कुल का नाश देखोगे. और तुम्हें भी उसी दर्द से गुजरना होगा.”
पांडवों ने 36 साल तक हस्तिनापुर में राज किया. लेकिन दूसरी ओर द्वारिका में गांधारी के दिए श्राप के कारण भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिका नगरी की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गई. इन सबसे छुटकारा पाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण पूरे यादव वंश को प्रभास ले आए. लेकिन वहां भी श्राप के कारण संपूर्ण यादव वंश एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए. हालात इतने बिगड़ने लगे कि पूरा यादव वंश ही खत्म हो गया.
इस विनाश लीला को रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने काफी प्रयत्न किए, किंतु सब व्यर्थ. एक दिन की बात है कि भगवान श्री कृष्ण किसी वृक्ष के नीचे विश्राम में थे उस समय किसी शिकारी ने भगवान कृष्ण पर ही निशाना साध दिया.
क्योंकि भगवान ने मृत्युलोक में जन्म लिया था इसलिए इस मनुष्य रूपी शरीर से एक दिन उन्हें दूर होना ही था. अतः भगवान श्री कृष्ण ने अपना देह त्याग दिया और बैकुंठ धाम चले गए.
यह सब होने के बाद युधिष्ठिर को व्यास जी ने सारी बातें बताते हुए कहा कि अब आपके जीवन का उद्देश्य खत्म हो चुका है.
द्वापर युग इस समय अपनी समाप्ति की ओर था और कलयुग का प्रारंभ होने वाला था. इसी बात को ध्यान में रखते हुए युधिष्ठिर ने हस्तिनापुर का राज-पाठ अपने पुत्र परीक्षित को दे दिया तथा खुद हिमालय की ओर चल पड़े अपनी अंतिम यात्रा की ओर.
युधिष्ठिर के साथ उनके चारों भाई भी और साथ हीं द्रौपदी भी उनके साथ चल पड़ी.
हिमालय तक पहुंचने के रास्ते काफ़ी कठिनाइयों से भरे थे. यात्रा करना अत्यंत कष्टकारी था. ऐसे में युधिष्ठिर का साथ धीरे-धीरे कर सभी छोड़ने लगे. शुरुआत द्रौपदी से हुई तथा सबसे अंत में भ्राता भीम ने अपना देश त्याग दिया.
इसके पीछे कारण था घमंड से उपजी अलग-अलग तरह की परेशानियां. सिर्फ धर्मराज युधिष्ठिर हीं ऐसे पुरुष थे जो शरीर सहित स्वर्ग तक पहुंच पाए. इस पूरी यात्रा में धर्मराज के साथ एक कुत्ता भी था.
जैसे हीं युधिष्ठिर और वह कुत्ता स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचा कुत्ता यमराज बन गया. दरअसल वह कुत्ता यमराज हीं थे जो पूरे रास्ते कुत्ते के रूप में धर्मराज युधिष्ठिर को स्वर्ग का रास्ता दिखा रहे थे.
सर्वप्रथम यमराज ने युधिष्ठिर को नर्क दिखाया जहां पर उनके चारों पांडव भाई और पत्नी द्रौपदी भी मौजूद थे. इन्हें देखकर युधिष्ठिर काफी उदास हो गए.
ऐसे में यमराज ने युधिष्ठिर को समझाया कि ये सब अपने कुछ पाप कर्मों के कारण नर्क में आए हैं लेकिन शीघ्र हीं उन्हें भी स्वर्ग लोक में ले आया जाएगा.
ये सब हुआ महाभारत युद्ध के बाद – इस तरह महाभारत की संपूर्ण कथा समाप्त होती है और भगवान श्री कृष्ण की लीला. इसके साथ ही अंत हो गया द्वापर युग का.
अब पृथ्वी लोक में कलयुग का आगमन हुआ जिसमें आज के समय में हम सब रह रहे हैं.