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ये होता है जब आप नए साल के रेसोल्युशन्स बनाते हो! छोड़ो परे! बच के रहो यार!

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4) गिल्ट या अपराध बोध

जब रेसोल्युशन्स एक-एक करके टूटने लगते हैं तो उसका अपराध बोध बहुत ज़ख़्मी करता है यार! लगता है फिर से फ़ेल हो गए! कोशिश पुरज़ोर होती है लेकिन नतीजा वही का वही! लगता है क्या हम लूज़र हैं जो दो चार वादे भी नहीं निभा सकते?

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