3) वादे पूरे ना कर पाने की टेंशन
एक तो रेसोल्युशन्स याद नहीं रहते और फिर उनके पूरे ना हो पाने की वजह से टेंशन जो होती है वो अलग! काम के बोझ में दबे हुए कब डाइटिंग खिड़की से बाहर फुर्र हो जाती, इसका एहसास ही नहीं रहता! या घरवालों को डिनर का प्रॉमिस करके आधी-रात घर में घुसना होता है तो उसकी भरपाई के लिए एक और वादा कर दिया जाता है जिसके पूरे होने के भी आसार आधे-अधूरे ही होते हैं!