2) वादे पूरे करने का स्ट्रेस
पहले दो-तीन दिन तो हम अपने वादों पर टिकते हैं लेकिन उसके बाद उन्हें पूरा कर पाना जान पर आने लगता है! बात वही है, तारीख़ बदली है, आप और हम तो वही के वही हैं! अपना रूटीन तो चल ही रहा होता है, साथ में हर पल ख़ुद को ख़ुद से किये वादे याद दिलाते रहने पड़ते हैं! सामने गुलाब जामुन आ गए तो हाथ रोकना पड़ता है, ठंडी की सुबह जॉगिंग के लिए ज़बरदस्ती उठना पड़ता है! और आपको याद ना रहे तो घरवाले और दोस्त-यार ताने मारने शुरू कर देते हैं कि इतने जल्दी रेसोल्युशन्स भूल गए?