भारत को अगर मंदिरों का देश कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
हमारे देश में एक से बढ़कर एक तरह मंदिर है. चाहे वो भव्यता के मामले में हो या फिर अनोखेपन में.
हमारे देश के गुजरात राज्य में कुछ बहुत ही अनोखे मंदिर है. जैसे गायब होने वाले शिव का मंदिर, मुस्लिम महिला की देवी रूप में पूजा करने वाला मंदिर इसी श्रृंखला में आज हम आपको गुजरात के एक और ऐसे ही अनोखे मंदिर के बारे में बताएँगे.
जहाँ किसी भगवान् की नहीं एक जानवर की पूजा होती है वो भी उसकी हड्डियों की .
गुजरात में वलसाड़ में एक छोटासा गाँव है, इस गाँव का नाम मगोद डूंगरी है. इस गाँव में एक मंदिर है. इस मंदिर को मत्स्य माता का मंदिर कहा जाता है.
यहाँ विष्णु के मत्स्य अवतार की पूजा नहीं की जाती. यहाँ पूजा होती है एक व्हेल मछली के अवशेषों की. जी हाँ मत्स्य माता मंदिर में व्हेल की विशालकाय हड्डियों की पूजा की जाता है.
इस मंदिर के बारे में कहा आता है कि इस मंदिर का निर्माण 300 वर्ष पहले एक मछुआरे ने ही किया था. प्रभु टन्देल नामक मछुआरे को स्वप्न में दिखाई दिया की एक विशालकाय मछली समुद्र तट पर आखिरी साँसे ले रही है.
सवेरा होने पर जब वो मछुआरा समुद्र तट पर देखा तो उसने देखा स्वप्न में दिखाई देने वाली विशाल मछली वहां पर मरी पड़ी थी.
इससे पहले गाँव में किसी ने व्हेल मछली नहीं देखी थी. इसलिए गांव वाले व्हेल को देखकर आश्चर्यचकित हो गए.
प्रभु टन्देल ने ये भी बताया कि उसने सपने में देखा कि देवी माँ इस मछली के रूप में किनारे तक आई और अपने प्राण त्याग दिए. मछुआरे की बात को सुनकर बहुत से लोगों ने देवी माँ के मछली रूप का मंदिर बनाने का निर्माण किया.
मंदिर निर्माण के समय व्हेल के मृत शरीर को दफना दिया गया.जब मंदिर का निर्माण पूरा हुआ उसके बाद व्हेल की हड्डियों को मंदिर में मूर्ति की जगह स्थापित कर दिया गया.
इस मंदिर के निर्माण के समय कुछ लोगों ने अड़चने भी पैदा की थी और मजाक भी उड़ाया था. मंदिर बनने के बाद गाँव में भयंकर बीमारी फैलने लगी. गाँव वालों ने इसे देवी का कोप माना. प्रभु नामके उस मछुआरे ने देवी से प्रार्थना की और क्षमा याचना की.
ऐसा करने के बाद चमत्कारिक धन से गाँव से महामारी दूर हो गयी और लोग फिर से स्वस्थ हो गए. इस चमत्कार के बाद मत्स्य माता की मान्यता बढ़ गयी .
करीब 300 सालों बाद आज भी ये मंदिर मछुआरों की श्रद्धा का केंद्र है. मछली पकड़ने जाते समय हर मछुआरा मत्स्य माता के मंदिर में आकर पूजा अर्चना ज़रूर करता है.
कहा जाता है कि जो इस मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करता उसके साथ समुद्र में दुर्घटना होती है. नवरात्रि के समय अष्टमी में इस मंदिर में मत्स्य माता का विशाल मेला लगता है.
देखा आपने कैसा अनोखा है ये मंदिर. हमारे देश में भगवान् को किसी भी रूप में माना जाता है. शायद हम लोग इसीलिए कहते है कि प्राणिमात्र में भगवन है.
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