पश्चिम बंगाल में सोमवार को हुए पेचायत चुनाव के दौरान हुई व्यापक हिंसा में 12 लोगों की मौत व 43 लोग घायल हो गए थे।
राज्य में हो रही इतनी हिंसा के बावजूद बंगाल में करीब 73% मतदान हुए। हालांकि पंचायत चुनाव के दौरान व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए जाने तथा पंश्चिम बंगाल और पड़ोसी राज्यों से 60000 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाने के बावजूद उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, पूर्वी मिदनापुर, बर्दवान, मुर्शिदाबाद, दक्षिणी दिनजपुर और बर्दवान जिलों में हिंसक झड़प हुई। हालांकि इस मामले पर पुलिस निर्देशक सुरजीत कर पुरकायस्थ ने बताया कि इस चुनाव में जितने लोग की जान गई है, वह पिछले पंचायत चुनाव में मारे गए लोगों की संख्या से कम है।
पिछले चुनाव में भी करीब 25 लोगों की मौत हो गई थी और इस हिंसा के दौरान 3 पुलिस कर्मी भी धायल हो गए थे। इस चुनावी हिंसा के बाद पुलिस ने करीब 70 लोगों को गिरफ्तार किया था।
हर चुनाव में होता है पश्चिम बंगाल बेहाल
ये अब हर चुनाव का किस्सा हो गया है। जब भी पश्चिम बंगाल में चुनाव होते है तो दंगे भड़कते है। बीरभूम जिले के शांति निकेतन में एक अध्यापक ने बेहद धीमा आवाज में इस डर के दास्तां को बया कर कहा- “डर जैसे हमारी नसों में घुस गया है। पंचायत चुनावों के दौरान टीएमसी कार्यकर्ताओं ने लोगों को धमकी दी कि अगर उन्होंने पार्टी को वोट नहीं दिया तो उनकी माँ-बेटियों के साथ बलात्कार किया जाएगा। आजकल जब हम राजनीति पर बात करते हैं तो पलट कर देख लेते हैं कि कहीं कोई सुन तो नहीं रहा…”
मई में हुए पंचायत चुनाव में करीब तीस प्रतिशत सीटों पर विपक्षी प्रार्टियों ने उम्मीदवार खड़े नहीं किए और टीएसमी के उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया गया। तो वहीं विपक्ष के लोगों का यही कहना है कि ऐसा टीएमसी के आतंक की के चलते ही हुआ।
पक्ष-विपक्ष का चलता है आरोप प्रत्यारोप का ड्रामा
पंचायत चुवान में विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि टीएमसी ने उनके उम्मीदवारों को हिंसा का डर दिखाकर नामाकंन पत्र दाखिल करने से रोका था। बीरभूम के देबूराम अनायपुर गांव में हमें भाजपा उम्मीदवार देबब्रत भट्टाचार्य मिले जिन्होंने आरोप लगाया था कि टीएमसी समर्थकों ने उन्हें एक पुलिस स्टेशन में घुसकर इतना पीटा कि उन्हें उसी समय अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने स्थानीय टीएमसी नेता गदाधर हाजरा का नाम लिया, लेकिन हाजरा ने किसी भी तरह की हिंसा से साफ इंकार कर दिया और कहा “बंगाल के लोग टीएमसी के अलावा किसी को वोट नहीं देना चाहते” अब ये बयान डर के चलते बदले या खुद से इस बात का पता लगाना जरा मुश्किल था, क्योंकि कोई भी उनके खिलाफ नहीं खड़ा होना चाहता था।
इसके बाद हजारा ने कहा कि “यहां सीपीएम, कांग्रेस और भाजपा नेता सभी है, लेकिन किसी के पास जमीन पर कार्यकर्ता नहीं है, हमने यहां साढ़े सात साल में जो विकास किया वो सीपीएम के 35 सालों में नहीं हुआ। हमने विपक्षी दलों से कहा कि अगर कोई नामांकन दाखिल करना चाहता है तो हम उसकी मदद करेंगे, लेकिन कोई सामने नहीं आया। हम लोगों पर अपने खिलाफ खड़ा होने के लिए दबाव नहीं डालते…. अब ये तो पश्चिम बंगाल की राजतनीति है, जिसमें लोग खोफ के चलते वोट देते है…..
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