दूल्हे की बारात घोड़ी पर – हिंदू रीति-रिवाज़ के अनुसार शादी के दिन दूल्हे की बारात घोड़ी पर बैठकर ही अपनी दुल्हन को लेन जाता है।
ये रिवाज़ सदियों से चला आ रहा है और आज तक किसी ने भी इसे मानने से इंकार नहीं किया है। शादी के दिन दूल्हे की बारात घोड़ी पर ही निकलती है और ये पंरपरा काफी पुरानी है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि दूल्हे के घोड़ी पर ही बैठकर अपनी दुल्हन को लेने जाने के पीछे की इस परंपरा के पीछे क्या कारण है।
शादी के दिन दूल्हे का घोड़ी पर ही क्यों बिठाया जाता है, उसे और किसी जानवर पर क्यों नहीं बिठाया जाता है।
तो चलिए जानते हैं दूल्हे की बारात घोड़ी पर क्यों निकलती है – इस सदियों पुरानी पंरपरा के पीछे छिपे कारण के बारे में।
प्राचीन समय में घोड़े का वीरता और शौर्य का प्रतीक माना जाता था इसलिए उस काल में सभी योद्धा घोड़े पर बैठकर ही युद्ध लड़ने जाया करते थे। पुराने समय में अधिकतर युद्धों में घोड़े पर बैठकर ही जंग लड़ी जाती थी और जंग में घोड़े विशेष भूमिका निभाते थे।
महाभारत काल में भी कृष्ण जी को रुक्मिणी से विवाह करने के लिए उनके भाई रुक्म से युद्ध करना पड़ा था।
रुक्मिणी जी का भाई रुक्म उनका विवाह किसी और से करवाना चाहता था किंतु रुक्मिणी जी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी। युद्ध के पश्चात् श्रीकृष्ण जी घोड़े पर ही रुक्मिणी जी को भगाकर ले गए थे और उनसे विवाह किया था।
राजा-महाराजा भी घोड़े की सवारी करना पसंद करते थे। वो भी जब कभी भ्रमण पर निकलते थे तो घोड़े पर बैठकर ही जाते थे। घोड़े को शाही सवारी माना जाता है।
शादी वाले दिन दूल्हा किसी राजा से कम नहीं होता है इसलिए दूल्हे की बारात घोड़ी पर निकलती है। अब दुल्हे का घोड़ी पर बैठकर अपनी दुल्हन को लाना एक शुभ प्रतीक बन गया है।
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