हथकरघा दिवस –
है आज भी उन्हीं गैरों का बोलबाला
फिर क्या तुम्हारा शरीर और क्या ये मधुशाला
किया था उन ज़ालिमों ने हमें निर्वस्त्र
आज भी हैं वही खड़े
चोला उन्ही का खुद पर धरे
आंखें खुली है और बंद भी
लाज ना आई सरेआम भी
बुनकर है वो गांव का
बुनता है तो बस अपने स्वाभिमान का
इज़्ज़त करता है अपने कौशल की
चाहत है तो बस समान अधिकार की
सम्मान जो तुम्हे ना मिला है और ना मिलेगा
उन गैरों के वेश में
आज भी करलो ज़रा जतन
बदल दो ये पश्चिमी वतन
क्योंकि भारतीय है हम
और दुःख है की आज भी निर्वस्त्र है हम
आज पूरा देश मना रहा है हथकरघा दिवस जिसे दो वर्ष पूर्व ही शुरू किया गया है | हम बातकर रहे है उन बुनकरों की जो आज भी गरीबी में जीवन यापन कर रहे है | क्यू ना आज सोचें और साँझा करे उनके दर्द जिन्हे कभी बयां ही नहीं किया गया | रोटी , कपड़ा और मकान आज भी आवश्यक है चाहे हम कितना ही आधुनिक क्यों न हो जाएं | और इन्ही में से एक कपड़ा जिसे हमने आज फैशन की परिभाषा दे दी है, कहीं ना कहीं अपनी असली पहचान खोता जा रहा है |
आखिर क्या है बुनकर ?
बुनकर समाज हमारे देश का एक वरिष्ठ और सक्षम समाज है जो आज भी द्रढ़ है अपनी संस्कृति को बचाये रखने में | जयपुरी बांधनी , हरयाणा दरी , बिहार टसर सिल्क , ओडिशा बोमकई , गुजरात पाटन पटोला, आंध्रा प्रदेश इक्कत – ऐसे ही अनेक उदाहरण है हमारी परंपरा के | देश के गांव कसबे जिन्हे आज भी नकारा जाता है पिछड़ा बताकर, वही है जो आज देश को दुनिया भर में पहचान दिला रहे है | सिल्क का एक्सपोर्ट आज धड़ल्ले से हो रहा है ऊँची मांग के चलते | और हम भारतीय पहन रहे है फैशन |
ज़रूरी है खुद को पहचानना
रीस करने का कोई फायदा नहीं जब खुद के बारे में आप बेखबर हो | अंधाधुंध चल रहे फैशन को अपनाने का फायदा तभी है जब आप खुद की पहचान बनाये रखें | हर रोज़ एक नया इंसान बनना भी खतरनाक है | कही ऐसा न हो की खुद का व्यक्तित्व ही खो दे | जिस वेग से हम भाग रहे है ज़रूरी है अपने अंदर के भाव को जगाये रखना | और ये संभव तभी है जब हम खुद अपनी पहचान बनाये ना की दुसरो को अपनाये |
खुद को परखिये जानिए और फिर फैसला कीजिये | इन सबमें कपड़ो का मूल उद्देश्य ये है की वो आपको खुद से जोड़े रखते है | हाथ से बने हुए रंग, जैविक पदार्थो से तराशे गए धागे अपनेआप में ही बहुमूल्य है |
कही ऊब न जाये स्टाइल से
आजकल कपड़ा व्यापर इसका खूब ध्यान रखता है की ग्राहक को मनपसंद सामान मिले | परन्तु दुष्चक्र ये है की मांग को बाजार में उत्पन्न किया जाता है ना की विश्लेषण | सस्ते से सस्ता और महंगे से मेहेंगा सब है यहाँ और अंतर है सिर्फ मॉल और स्थानीय बाजार का | और कुछ नहीं बस मनोरंजन का साधन ही समजिये इसको भी |
हम हाथ से बनी हुई वस्तुओं को सामान्य समझते है पर बुनियाद यही देते है और जड़ो को मज़बूत रखते है |
आजकल तो हथकरघा बॉलीवुड, अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक जा पहुंचा है और अब बस बाकी है तो खुद अपने लोगो क दिलो तक पहुंचना |
ऐसे कई ब्रांड्स है जो इस और आकर्षित है और जोरो शोरो से हथकरघा प्रवत्ति की ओर प्रेरित है | इन्ही में से कुछ ब्रांड्स है विव्वस यूनाइटेड , फैब इंडिया, रॉ मैंगो |
इस हथकरघा दिवस पर —-
ना सिर्फ बुनकर बल्कि चाह है देश की संस्कृति को बचाने की,
आज का युग है आज की ही परंपरा लिए ,
कुछ बदलाव लिए चले है हम ,
दृढ़ता भरी निगाहो से कोशिश करेंगे देश को बचाने की हम |