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इंग्‍लिश मीडियम स्‍कूलों में पढ़ने के बाद भी बच्‍चे क्‍यों रह जाते हैं अंग्रेजी में कमजोर

अंग्रेजी में कमजोर

अंग्रेजी में कमजोर – भारत में एजुकेशन सिस्‍टम बहुत कमज़ोर है और शायद इसी वजह से यहां नौकरियां होते हुए भी स्किल्‍ड कैंडिडेट्स की कमी है।

हाल ही में हुए एक सर्वे में ये बात साबित हो चुकी है कि विकसित देशों के एजुकेशन सिस्‍टम तक पहुंचने में भारत की कई पीढियां गुज़र जाएंगीं।

शिक्षा के स्‍तर के मामले में प्राइवेट इंस्‍टीट्यूट हों या स्‍कूल, सभी की हालत खस्‍ता हो चुकी है। वैसे तो सरकारी स्‍कूलों में अच्‍छी शिक्षा देने का दावा किया जाता है लेकिन असल में ऐसा कुछ है नहीं।

कहने को तो सरकार ने इंग्‍लिश मीडियम स्‍कूल खोल दिए हैं लेकिन इस बात की गारंटी लेने वाला कोई भी नहीं है कि यहां पर अच्‍छे स्‍तर की शिक्षा दी भी जाती है या नहीं। अकसर माता-पिता अपने बच्‍चों को इंग्‍लिश मीडियम स्‍कूल में डालते हैं ताकि वो अच्‍छी इंग्‍लिश बोल सकें और उनका करियर इस लैंग्‍वेज की वजह से ठप्‍प ना हो जाए लेकिन इंग्‍लिश मीडियम स्‍कूलों में पढ़ने के बावजूद 50 प्रतिशत बच्‍चे अंग्रेजी में कमजोर रह जाते हैं।

आइए जानते हैं बच्चे अंग्रेजी में कमजोर रहने के पीछे क्‍या कारण है।

अंग्रेजी में कमजोर

1 – योग्‍य अध्‍यापकों की कमी

भारत इस समय योग्‍य शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है। जब अच्‍छे शिक्षक ही नहीं होंगें तो वो विद्यार्थियों को क्‍या योग्‍य बना पाएंगें। बस इसी चक्‍कर में भारत का आने वाला भविष्‍य बिगड़ रहा है।

2 – नियमों का पालन ना करना

प्राइवेट स्‍कूलों में बच्‍चों की इंग्‍लिश स्‍पीकिंग पर खास ध्‍यान दिया जाता है। प्राइवेट स्‍कूलों में ये नियम है कि बच्‍चों को अंग्रेजी भाषा में ही बात करनी है। ऐसा ना करने पर उन्‍हें सज़ा भी दी जाती है जबकि सरकारी स्‍कूलों में ऐसा कोई भी नियम नहीं है। ऐसे स्‍कूलों में इंग्‍लिश को बस एक सबजेक्‍ट की तरह पढ़ाया जाता है।

3 – माता-पिता का पढ़ा लिखा ना होना

कहते हैं कि बच्‍चे जो सुनते और देखते हैं वहीं करते हैं। जिन बच्‍चों के माता-पिता पढ़े-लिखे होते और इंग्‍लिश में बात करते हैं उनके बच्‍चे भी अपनी पढ़ाई पर ज्‍यादा ध्‍यान दे पाते हैं। लेकिन जिन घरों में माता-पिता हिंदी में बात करते हैं वहां बच्‍चों को भी हिंदी बोलने की ही आदत पड़ जाती है।

ये है अंग्रेजी में कमजोर रहने की वजहें – हम ये नहीं कह रहे हैं कि इंग्‍लिश ही सब कुछ है और जीवन में सफलता पाने के लिए आपको ये भाषा जरूर आनी चाहिए। लेकिन भारत का माहौल ही कुछ ऐसा हो गया कि यहां हिंदी बोलने वाले को फूहड़ और अंग्रेजी बोलने वाले को शिक्षित कहा जाता है। इसलिए अगर आप सफल होना चाहते हैं तो आपको भी अंग्रेजी की गुलामी करनी ही पड़ेगी।