त्रेतायुग में जन्में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भगवान विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं और भगवान शिव को विष्णु अपने आराध्य देव के रुप में पूजते हैं.
लेकिन क्या आप जानते हैं एक बार ऐसे हालात भी बने थे, जब विष्णु के अवतार श्रीराम और भगवान शिव को युद्ध के मैदान में आमने-सामने आना पड़ा था. दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था.
लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही होगी जिसने भगवान शिव और श्रीराम को एक-दूसरे से युद्ध करने के लिए विवश कर दिया ?
अश्वमेध यज्ञ था सबसे बड़ा कारण
पुराणों में इस बात का ज़िक्र किया गया है कि भगवान शिव और श्रीराम के बीच युद्ध अश्वमेध यज्ञ के दौरान हुआ था.
जब श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, तब उस अश्वमेध यज्ञ का अश्व कई राज्यों को श्रीराम की सत्ता के आधीन किए जा रहा था.
राजा वीरमणि ने की थी शिव की तपस्या
एक बार वह अश्व दौड़ते-दौड़ते राजा वीरमणि के राज्य देवघर पहुंचा, जिसके मुताबिक देवघर भी श्रीराम की सत्ता के आधीन किया जाना था और वो नहीं चाहता था कि उसका राज्य श्रीराम की सत्ता के आधीन हो.
राजा वीरमणि भगवान शिव का परम भक्त था. उसने तपस्या करके भगवान शिव से अपनी और अपने पूरे राज्य की रक्षा करने का वरदान मांगा था.
जब यज्ञ का घोड़ा उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उस घोड़े को बंदी बना लिया. जिसकी वजह से अयोध्या और देवघर में जंग छिड़ना तय था.
श्रीराम की सेना पर भारी पड़े शिवगण
अपने परम भक्त वीरमणि और उसके राज्य को मुसीबत में देखकर भगवान शिव ने वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी समेत अपने सभी गणों को मदद के लिए भेज दिया.
युद्ध के मैदान में एक तरफ श्रीराम की सेना थी तो दूसरी तरफ भगवान शिव की सेना. युद्ध के मैदान में वीरभद्र ने श्रीराम की सेना में शामिल भरत के पुत्र पुष्कल का त्रिशुल से मस्तक काट दिया.
दूसरी तरफ भृंगी समेत शिव के दूसरे गणों ने भी श्रीराम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना लिया. हनुमान भी जब नंदी के शिवास्त्र से हारने लगे तब सभी ने मदद के लिए श्रीराम को याद किया.
शिवगणों को परास्त करने मैदान में उतरे श्रीराम
अपने भक्तों की पुकार सुनकर श्रीराम तुरंत लक्ष्मण और भरत के साथ युद्ध के मैदान में पहुंचे. शिव गणों की कैद से श्रीराम और लक्ष्मण ने सबसे पहले शत्रुघ्न और हनुमान को मुक्त कराया और फिर श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिव गणों पर धावा बोल दिया.
एक-एक करके नंदी समेत सारे शिवगण परास्त होने लगे, तब अपनी सेना को कष्ट में देखकर स्वयं भगवान शिव को युद्ध क्षेत्र में आना पड़ा.
भगवान शिव और श्रीराम के बीच युद्ध
जब भगवान शिव युद्ध के मैदान में प्रकट हुए तब भगवान शिव और श्रीराम के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया.
इस भयंकर युद्ध के अंत में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर कर भगवान शिव से कहा कि हे महादेव आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा दिए गए इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई भी पराजित हुए बिना नहीं रह सकता.
इसलिए आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता हूं, इतना कहते हुए श्रीराम ने वो दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया.
श्रीराम के दारा चलाया गया वो अस्त्र सीधे भगवान शिव के हृदयस्थल में समा गया औऱ इससे भगवान शिव संतुष्ट हुए. उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें.
श्रीराम की सेना के वीरों को जीवनदान
युद्ध में भगवान शिव के संतुष्ट होने पर श्रीराम ने उनसे भरत के पुत्र पुष्कल समेत युद्ध में मारे गए असंख्य योद्धाओं को फिर से जीवनदान देने का वरदान मांगा, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार करते हुए सभी को जीवनदान दिया.
इसके बाद शिव की आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व श्रीराम को लौटा दिया और श्रीराम भी वीरमणि को उनका राज्य सौंपकर शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर चल दिए.
गौरतलब है कि भगवान शिव को अपने दिए हुए वरदान के चलते युद्ध के मौदान में आना पड़ा और श्रीराम को अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए युद्ध क्षेत्र में उतरना पड़ा, लेकिन भगवान शिव और श्रीराम बीच हुए इस भयंकर युद्ध का अंत आखिरकार सुखद ही रहा.
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