पुरानी मान्यतों के अनुसार कहते हैं कि घोंड देवता जब पीणी आये थे उस वक़्त इस पुरे इलाक़े में राक्षसों का आतंक था. भादो सक्रांति के पहले दिन ही जब घोंड देवता ने इस गाँव में अपना कदम रखा तभी से उन राक्षसों का खात्मा होने लगा था. इसके बाद से ही इस गाँव के लोग के बीच यह अनोखी परंपरा की शुरुआत हो गयी और महिलायें कपड़ें की जगह पट्टू पहनने लगी.
गाँव वालो द्वारा माता भागासिद्ध और घोंड देवता की इन पांच दिन पूजा की जाती हैं साथ ही माता चामुंडा, माता कराण और देवता नारायण के करीब 25 चेले इन दिनों लोगो के आकर्षण का केंद्र होते हैं.
माता भागासिद्ध इस इलाक़े में इतनी पूजनीय हैं कि भक्तों ने उनका मंदिर बना कर रखा हैं और साल के इन पांच दिन पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा की जाती हैं.
मंदिर के पुजारी मोहर सिंग के अनुसार साल के यह पांच दिन इस इलाके के सभी लोग कड़ाई के साथ इन देव नियमों का पालन करते हैं और पूरी परंपरा को ध्यान में रख कर इसका निर्वाह करते हैं.