विजय आनंद गजपती राजू – हमलोगों ने महेंद्र सिंह धोनी की कैप्टन देखी है और अब विराट कोहली की भी कप्तानी देख रहे हैं जिन्होंने इंडियन क्रिक्रेट टीम को बुलंदियों में पहुंचा दिया.
लेकिन इन कप्तानों से इर आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसा कैप्टन की जिसने इंडियन क्रिकेट टीम को दो हिस्सों में बांट दिया. वो कप्तान से ज्यादा विलेन की तरह याद किया जाता है जो अपने रसूख के कारण इंडियन क्रिकेट टीम का कप्तान बना और जमकर मनमानियां की.
विजय आनंद गजपती राजू –
के. के. मेनन की बात को झुठलाया
प्रसिद्ध एक्टर के. के. मेनन ने एक बार कहा कि खेल की खास बात है कि इसमें किसी का रसूख नहीं चलता अगर आप अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं तो आपको टीम से बाहन निकाल दिया जाएगा. लेकिन इस इंसान ने के. के. मेनन की सारी बात को झूठा साबित कर दिया और अपने खराब प्रदर्शन के बावजूद इंडियन क्रिकेट टीम का कैप्टन बना.
जमकर की मनमानियां
कहा जाता है कि जिम्मेदारी आती हैतो खराब से खराब इंसान भी होश संभाल लेता है और अपनी जिम्मेदारियां संभालता है. लेकिन इस विलेन के साथ ऐसा नहीं था
हम बात कर रहे हैं विजय नगरम के महाराज कुमार उर्फ विज्जी की जो इंडियन क्रिकेट टीम का सबसे विवादास्पद चेहरा माना जाता है. विज्जी अपने पावर और पॉलिटिकल कनेक्शन के कारण इंडियन क्रिकेट टीम का कैपटन बना और जमकर मानमानियां की. इसने लाला अमरनाथ तक की बेइज्जती की. इन्होंने इंगलैंड दौरे की कैपटनशिप की थी जो आजतक की सबसे बड़ी त्रासदी मानी जाती है.
विज्जी का असली नाम विजय आनंद गजपती राजू था उनका जन्म विजयनगरम के प्रिंसली स्टेट में हुआ था जिसे आज आंध्रप्रदेश के नाम से जाना जाता है. वे अपने पिता के छोटे बेटे थे जिसके कारण उन्हें राज्य नहीं मिला. लेकिन विज्जी का भी शौक क्रिकेट में था जिसके कारण उन्हें इस बात का ज्यादा मलाल नहीं हुआ. लकिन शौक होने स कोई फर्क नहीं पड़ता अगर आपमें क्षमता ना हो.
महिर बोस की किताब
मिहिर बोस अपनी किताब – द हिस्ट्री ऑफ इंडियन क्रिकेट में इसके बारे में लिख चुके हैं. 18वीं सदी में सर होराटियो मान की तरह अगर विजय आनंद गजपती राजू भी क्रिकेट को स्पॉन्सर करते तो उनका नाम क्रिकेट में सुनहरे अक्षरों से लिखा जाता लेकिन उन्हें तो क्रिकेट खेलने का शौक था और यही शौक उस समय क्रिकेट के पतन की वजह बना.
रणजी ट्रॉफी को खत्म करना
रणजी ट्रॉफी की शुरुआत महाराजा ऑफ पटियाला ने के. एस. रणजीत सिंह के नाम पर शुरू की … 500 पाउंड की कीमत वाली इस ट्रॉफी के बाद महाराजा ऑफ पटियाला का इंडियन क्रिकेट में रसूख बढ़ने लगा. जिसे देखकर विज्जी ने सोने की ट्रॉफी बनवाई और घरेलू चैंपियनशिप में इस ट्रॉफी को देने की बात रखी. लेकिन उनकी ना चली और रणजी ट्रॉफी अब तक खेली जाती है.
नाइटहुड की उपाधि
विजय आनंद गजपती राजू ने अपने रसूख के कारण खुद क नाइटहुड की उपाधि दिलवा दी. 15 जुलाई 1936 को उनको नाइटहुड की उपाधि मिली.
उस समय विज्जी का कप्तान सी के नायडू से चल रहा तो इसी तरह लाला अमरनाथ से भी उनका झगड़ा हुआ और अपने रसूख से उन्हें टीम से निकलवा भी दिया. जिसके बाद पूरी टीम ने बोर्ड के सामने अपनी मांग रखी और यहीं टीम दो हिस्सों में बंट गई. वो तो शुक्र है कि नवाब ऑफ भोपाल की रिपोर्ट आने के बाद विज्जी को टीम से बाहर निकाल दिया गया और इंडियन क्रिकेट टीम पटरी पर आने लगी.
खैर ये बीते सालो की बात है जिसे याद ना करना ही ज्यादा अच्छा है. आप केवल जानकारी के लिए पढ़ लीजिए क्योंकि जानकारी तो हर बात की होनी चाहिए. वैसे भी आप क्रिकेट टीम के स्वर्ण काल में जी रहे है तो बुरे काल को क्यों याद करना.