आज तक आपने यही पढ़ा होगा कि वास्को डी गामा ने भारत की खोज की थी.
यह एक समुद्री नाविक था जो बस यहाँ वहां घूमता रहता था. इस इतिहास को तो आप जानते होंगे.
एक दूसरा सच जानने से पहले आइये पढ़ते हैं कि हमारी इतिहास की पुस्तकें इनके बारे में क्या जानकारी देती हैं.
इतिहास की पुस्तकों में
वास्को डी गामा कप्पड़ पर कालीकट के निकट 20 मई 1498 ईस्वी को भारत में आया था. वह कालीकट के क्षेत्रीय राजा जमेरिन से मिला और उसके साथ वार्ता सम्पन्न की. उसने कालीकट के स्थानीय राजा से मुलाकात की. हालांकि, यह वार्ता भारतीयों के साथ व्यापारिक संबंधों की स्थापना के संदर्भ में वास्को डी गामा के लिए उपयोगी नहीं था.
वास्को डी गामा 1502 ईस्वी में, भारत की यात्रा पर पुनः वापस आया और भारत के व्यापारियों और निवासियों के साथ नौसेना से सम्बंधित प्रतिद्वंद्विता शुरू कर दिया. इस बार के यात्रा में वह पिछली यात्रा से अधिक सफलता प्राप्त की और पुर्तगाली व्यापारियों के लिए बेहतर रियायतें पाने में सफलता प्राप्त की. वास्को डी गामा की 1524 ईस्वी में कोचीन में मलेरिया से मृत्यु हो गई.
स्वर्गीय राजीव दीक्षित जब सामने लाये सच
“वास्को डी गामा यहाँ आया था भारतवर्ष को लुटने के लिए, एक बात और जो इतिहास में, मेरे अनुसार बहुत गलत बताई जाती है कि वास्को डी गामा एक बहूत बहादुर नाविक था, बहादुर सेनापति था, बहादुर सैनिक था, और हिंदुस्तान की खोज के अभियान पर निकला था, ऐसा कुछ नहीं था, सच्चाई ये है कि पुर्तगाल का वो उस ज़माने का डॉन था.
ये वास्को डी गामा जब कालीकट में आया, 20 मई, 1498 को, तो कालीकट का राजा था उस समय झामोरिन, तो झामोरिन के राज्य में जब ये पहुंचा वास्को डी गामा, तो उसने कहा कि मै तो आपका मेहमान हूँ और हिंदुस्तान के बारे में उसको कहीं से पता चल गया था कि इस देश में अतिथि देवो भव की परंपरा है. तो झामोरिन राजा ने, ये अथिति है ऐसा मान कर उसका स्वागत किया, वास्को डी गामा ने कहा कि मुझे आपके राज्य में रहने के लिए कुछ जगह चाहिए, आप मुझे रहने की इजाजत दे दो, परमीशन दे दो. झामोरिन एक सीधा सादा आदमी था, उसने कालीकट में वास्को डी गामा को रहने की इजाजत दे दी. जिस वास्को डी गामा को झामोरिन के राजा ने अथिति बनाया, उसका आथित्य ग्रहण किया, उसके यहाँ रहना शुरु किया, उसी झामोरिन की वास्को डी गामा ने हत्या कराई. हत्या कराने के बाद खुद वास्को डी गामा कालीकट का मालिक बना. और कालीकट का मालिक बनने के बाद उसने क्या किया कि समुद्र के किनारे है कालीकट केरल में, वहां से जो जहांज आते जाते थे, जिसमे हिन्दुस्तानी व्यापारी अपना माल भर-भर के साउथ ईस्ट एशिया और अरब के देशो में व्यापार के लिए भेजते थे, उन जहांजो पर टैक्स वसूलने का काम वास्को डी गामा करता था. और अगर कोई जहांज वास्को डी गामा को टैक्स ना दे, तो उस जहांज को समुद्र में डुबोने का काम वास्को डी गामा करता था.”
आज इस बात की अच्छी तरह से पुष्टि की जा चुकी है.
यहाँ तक कि कुछ अंग्रेजी लेखक भी इस बात को सत्य मानते हैं तभी शायद किसी ने भी तब राजीव दीक्षित पर मानहानि का केस नहीं दर्ज कराया था. लेकिन आज भी अगर कोई इस बात को झूठ सिद्ध कर सकता है तो उसे भी सामने आकर बोलना चाहिए.
अभी भारतीय जनता चाहती है कि सरकार खुद इस बात की पुष्टि करे और सच सामने लाये. ताकि देश की जनता और आने वाली पीढ़ियां पूरा सच जान सकें.
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