भाजपा नेता और मेनका गांधी के पुत्र वरूण गांधी करीब तीन साल के रहे होंगे.
कोई दोपहर का समय था. मेनका गांधी थाने पहुंचती है और वहां पुलिस को वरूण गांधी के अपहरण की सूचना देती है.
गांधी के अपहरण की खबर सुनकर पुलिस में हड़कंप मच जाता है क्योंकि वरूण उस समय भारत के प्रधानमंत्री के पोते थे. देश के प्रधानमंत्री के पोते का अपहरण हो जाए ये तो पुलिस के लिए बहुत बड़ी बात थी.
कंट्रोल रूम के वायरलैस घनघनाने लगते हैं.
लेकिन पुलिस उस वक्त सन्न रह जाती है जब मेनका गांधी पुलिस को अपने बेटे वरूण गांधी के अपहरण की जो तहरीर देती है उसमें अपहरणकर्ता में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम लिखती है.
मेनका गांधी बताती है कि उनकी सास ने उनके बेटे का अपहरण कर लिया है और उसकों प्रधानमंत्री आवास में बंधक बनाकर रखा गया है.
दरअसल, संजय गांधी की मृत्यु के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मेनका गांधी के संबंध इतने बिगड़ गए थे कि मेनका को आधी रात को इंदिरा ने घर से बाहर निकाल दिया था. घर से निकाले जाने की बात 1982 की है.
घर से निकाले जाने के बाद मेनका गांधी वरूण गांधी को लेकर अलग रहने लगी.
लेकिन इंदिरा गांधी ने भले ही मेनका को अपने प्रधानमंत्री आवास से अलग कर दिया हो लेकिन वे अपने पोते वरूण को दिल से नहीं निकाल पाई थी. जब वरूण करीब तीन के हुए तो इंदिरा गांधी अक्सर मेनका गांधी के घर के बाहर पहुंचती है और खिलाने के लिए वरूण को अपने साथ ले जाती.
इसी बीच दादी पोते के मिलने का यह सिलसिला धीरे धीरे बढ़ने लगा. जब उन्हें समय नहीं मिलता तो वे उसको गाड़ी भेजकर अपने पास बुला लिया करती. लेकिन मेनका ने इंदिरा गांधी का अपने पोते वरूण से मिलने का समय निर्धारित किया हुआ था. वह दो घंटे से ज्यादा उसको अपने पास नहीं रोक सकती थी.
लेकिन एक दिन अपनी दादी से मिलने गए वरूण को काफी देर हो गई. शाम होने को थी वरूण नहीं आया. मेनका गांधी ने वरूण को लेने के लिए अपनी गाड़ी और ड्राइवर को भेजा. लेकिन इंदिरा गांधी ने वरूण गांधी को मेनका के पास भेजने से मना कर दिया.
इससे खफा मेनका गांधी सीधे पुलिस थाने पुहंची और इंदिरा गांधी के खिलाफ अपने बेटे का अपहरण करने का मामला दर्ज करा दिया. शुरू में तो इंदिरा गांधी ने इंकार किया लेकिन जब लोगों ने समझाया कि मेनका अपने बेटे के लिए आपको अदालत तक घसीट सकती है और कानून आप वरूण को उसकी मा से अलग नहीं कर सकती है.
इसके बाद मेनका गांधी के तेवर देख इंदिरा गांधी को अपने कदम पीछे खींचने पड़े.
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