देश में सब कुछ शांत चल रहा था.
अचानक एक दिन दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॅालेज में हंगामा होता है और बात इतनी आगे बढ़ जाती है कि लोगों के कुछ समझ में नहीं आता है कि ये सब क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है.
इसको समझने के लिए आपको थोड़ी राजनीति समझनी पड़ेगी. इन दिनों उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव चल रहे हैं.
इसके लिए आपको थोड़ा पीछे की ओर जाना होगा. जब बिहार में विधान सभा के चुनाव चल रहे थे. उस दौरान देश में असहिष्णुता को मुद्दा बनाया जा रहा था. ताकि नरेंद्र मोदी के नाम पर देश में भय का माहौल पैदा कर उसको चुनावों में कैश किया जा सके.
वामपंथियों की असली मंशा – वामंपथी साहित्यकार, पत्रकार और छात्र संघों ने इसको लेकर देश में एक मुहिम चलाई, जिसका लाभ उन्होंने बिहार चुनाव में उठाया. लेकिन उत्तर प्रदेश चुनावों में उनको कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था, जिसे वे प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ प्रयोग कर सके. इसलिए बहुत ही प्लान तरीके से इस मुहिम को तैयार कर उसको अमली जामा पहनाया गया है, क्योंकि जिन लोगों ने इस पूरे विवाद को जन्म दिया है इसके पीछे उनकी मंशा का पता चलता है.
रामजस कॅालेज में कार्यक्रम को आयोजित कराने वाले भंलिभांति जानते थे कि जेएनयू में कश्मीर की आजादी के नारे लगाने वाले छात्र उमर खालिद को डीयू में छात्र दोबारा से कश्मीर की आजादी की आवाज बुलंद नहीं करने देंगे. इसलिए इसको जानबूझ कर किया गया ताकि इसको लेकर कोई विवाद हो और उसको मीडिया में उछाल कर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ यूपी चुनावों में माहौल बनाया जाए.
सब कुछ वामपंथियों की तय रणनीति के तहत हुआ. ये वामपंथियों की असली मंशा है. वहां पर कश्मीर से बस्तर की आजादी के नारे लगे और जब वहां पर इसका विरोध हुआ हिंसा हुई और उसको मुद्दा बनाया गया.
इसके लिए बाकायदा सोशल नेटवर्किंग साइट का प्रयोग किया गया, क्योंकि डीयू की छात्रा गुरमेहर कौर के करीब एक वर्ष पुराने वीडियों को पोस्ट कर मामले को तूल देने की कोशिश हुई.
गुरमेहर कौर के रूप में आतंकी हमले में शहीद सैनिक की बेटी को आगे कर भाजपा को घेरने की रणनीति बनी. ताकि शहीद की बेटी का विरोध करते समय भाजपा और अन्य संगठन बैकफुट पर रहे हैं.
तो ये है वामपंथियों की असली मंशा – हुआ भी ऐसा ही लेकिन बाद में ये दांव उल्टा पड़ गया. क्योंकि उस दिन यदि देश विरोधी नारे या किसी अन्य बात को लेकर उमर खालिद के साथ कुछ ज्यादा हो जाता तो उमर के मुसलमान होने को मुद्दा बनाया जाता है. और चुनावों में उसका लाभ मुलसमान मतों के ध्रुवीकरण के रूप में भाजपा विरोधियों को मिलता.
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