पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जगजीवन राम की गोद में सर रखकर खूब रोए थे.
यह बात उन दिनों की जब देश में आपातकाल के बाद जनता पार्टी ने कांग्रेस को हराकर इंदिरा गांधी को चुनाव में पटखनी दे दी थी.
अब दिल्ली में सरकार बनाने और सरकार का मुखिया कौन हो इसके लिए बात चल रही थी. जयप्रकाश नारायण राजघाट पर नवनिर्वाचित जनता पार्टी सदस्यों को ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की शपथ दिला रहे थे.
लेकिन इसी दौरान जनता सरकार में प्रधानमंत्री पद के लिए दौड़ का खेल शुरू हो चुका था. नेतृत्व की दौड़ में थे मोरारजी देसाई, जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह.
उस वक्त ऐसा लगता था कि बहुमत जगजीवन राम की तरफ था, लेकिन जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी ने 82 वर्षीय मोरारजी देसाई के नाम पर मुहर लगा दी.
गौरतलब है कि चुनाव परिणाम के बाद दिल्ली में बहुत कश्मकश थी कि किसको नेता बनाएं. जनसंघ ने जगजीवन राम को समर्थन देने का फैसला किया था.
वो मानते थे कि अगर जगजीवन राम को नेता बनाया गया तो पार्टी को पाँच सालों तक चलाया जा सकता है. पर जगजीवन राम का एक कमजोर पक्ष ये था कि उन्होंने संसद में आपातकाल के प्रस्ताव के पक्ष में भाषण दिया था.
लिहाजा सवाल उठा कि जिसने आपातकाल का समर्थन किया वो जनता पार्टी का नेता कैसे हो सकता है? दूसरा चैधरी चरण सिंह भी किसी भी सूरत में जगजीवन राम को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे.
जब लोगों ने देखा कि बात बन नहीं रही है तो जयप्रकाश नारायण और आचार्य कृपलानी से अनुरोध किया गया कि आज जो नाम घोषित कर देंगे,उसे हम सब स्वीकार कर लेंगे.
इसको लेकर पर्दे के पीछे भी गतिविधियाँ तेज हुईं. दरअसल, जब चरण सिंह को पता चला कि त्रिकोणीय मुकाबले में जगजीवन राम आगे निकलने वाले हैं तो वो दौड़ से बाहर हो गए और अपना समर्थन मोरारजी देसाई को दे दिया. तभी जनसंघ ने भी जगजीवन राम का साथ छोड़ने का फैसला ले लिया.
लेकिन इस फैसले ने जगजीवन राम को नाराज कर दिया. वे सेंट्रल हॉल में नहीं गए. वे अपने घर पर ही थे.
बताया जाता है कि जगजीवन राम के घर पर एक दूसरा ही नजारा था. उनके समर्थक गुस्से में जनता पार्टी के झंडे कुचल रहे थे.
जनता पार्टी के एक नेता ने उन्हें मनाने के लिए कहा, जेपी ने कहलवाया है, आप जिस मंत्रालय का नाम ले लेंगे, वो आपको मिल जाएगा. जगजीवन राम चिल्ला कर बोले थे, मुझे देने वाले जयप्रकाश नारायण कौन होते हैं ?
फिर जेपी ने उन्हें फोन कर कहा, आपके सहयोग के बिना नए भारत का निर्माण संभव नहीं हो सकेगा.
इस तरह नए भारत के निर्माण में जगजीवन राम तैयार हो गए. इसके बाद
जनसंघ के कुछ नेता जगजीवन राम से मिलने उनके घर पहुंचे. जब जगजीवन राम को माजरा समझ में आया तो वो उन पर जोर से चिल्लाए.
जगजीवन राम जिस शख्स पर चिल्ला रहे थे वह कोई और नहीं बल्कि अटल बिहारी वाजपेई थे.
इस पर अटल बिहारी वाजपेई रोने लगे और जगजीवन राम की गोद में सिर रख कर उनसे माफी मांगने लगे, लेकिन जगजीवन राम इससे शात नहीं हुए. वो सोच रहे थे और ये शायद सही भी था कि उनके समर्थकों ने ऐन मौके पर उनका साथ छोड़ दिया था.
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