गायों का अभिभावक – गाय मर रही है कि नहीं… ये तो नहीं मालूम लेकिन उनको मारने के इल्जाम में इंसान जरूर मर रहे हैं। और दुख की बात है कि जहां गायें मर रही हैं वहां उन्हें बचाने वाला कोई नहीं है।
अब गौरक्षक क्या कर रहे हैं यह तो मालूम नहीं लेकिन मरती गायों की जिम्मेदारी इस राज्य के कोर्ट ने ली है और खुद को गायों का अभिभावक घोषित किया है।
उत्तराखंड में गायों को मिले उनके अभिभावक
राज्य उत्तरखंड के हाई कोर्ट ने अपनी तरह का पहले फैसला सुनाते हुए खुद को गायों का अभिभावक बताया है । यह पूरे देश के किसी भी कोर्ट के अपनी तरह का पहला आदेश है। गायों को बचाने के लिए उत्तराखंड हाई कोर्ट ने खुद को उनका लीगल गार्जिन बताया है। अब से उत्तराखंड में उच्च न्यायालय गायों के कानूनी अभिभावक होंगे और वे ही उनकी जिम्मेदारी लेंगे। ऐसे में कोई भी इंसान गौरक्षक के नाम पर गाय के लिए इंसान की हत्या नहीं करेगा और गाय को भी नहीं मारेगा।
Parens patriae का सिद्धांत
यह अपनी तरह का पहला फैसला है। इस फैसले के तहत अदालत ने parens patriae के सिद्धांत को लागू किया है। यह फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कई सारे संदर्भों का हवाला दिया है। इन संदर्भों में उपनिषद् और अर्थशास्त्र के ज्ञान, जैन और बौद्ध धर्म में दिए गए संदेश, महात्मा गांधी के वचन और दलाई लामा की जानवरों के प्रति चिंता की बातें शामिल हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देशों की श्रृंखला प्रदान करते हुए गाय, बैल और बछड़ों के हत्या व खरीद-फरोख्त को रोकने का आदेश सुनाया है।
क्या है parens patriae?
यह एक लैटिन वाक्यांश है। लैटिन में parens patriae का मतलब है कि देश के माता-पिता। यह सिद्धांत कोर्ट को असमर्थ लोग और जीवों के अभिभावक के रुप में कार्य करने की शक्ति देता है। इस निर्ण के बाद अदालत राज्य में गायों की कानूनी अभिभावक होगी और गायों के संरक्षण व सुरक्षा से संबंधित निर्देश व फैसले देगी। अगर कोई इन निर्देशों व आदेशों का उल्लंघन करता है तो अदालत स्वंय संज्ञान लेगी और उचित सजा का प्रावधान करेगी।
अदालत ने कैसे लिया यह फैसला
यह फैसला अदालत ने आर्टिकल 14 के तहत समानता के अधिकार पर लिया है। हाई कोर्ट ने पशु कल्याण, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजों और हिंदु धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि पशु कल्याण “मानवता की समानता” का एक अंग है।
41 पेज का आदेश
यह आदेश 41 पेजों का है। यह आदेस कोर्ट द्वारा बीते 10 अगस्त को दिया गया था जिसकी सर्टिफाइड कॉपी सोमवार को उपलब्ध कराई गई। यह फैसला कोर्ट के चीफ जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस मनोज कुमार तिवारी ने अपने आदेश में कही।
फैसले का प्रभाव
इस आदेश के बाद राज्य में गोमांस की बिक्री पर खुद ब खुद प्रतिबंध लग गया है। इसके अलावा अब कोई गौरक्षा के नाम पर किसी की जान नहीं ले सकता है। क्योंकि गायों की रक्षा की जिम्मेदारी न्यायालय के हाथ में है। गायों की रक्षा के लिए न्यायालय ने राज्य को पशु चिकित्सक के साथ पुलिस अधिक्षक के अध्यक्षता में एक विशेष दल की स्थापना करने का भी निर्देश दिया है। इस फसैले में राज्य में सभी लावारिस मवेशियों को मेडिकल सुविधा पहुंचाना भी शामिल है।
गायों का अभिभावक – उत्तराखंड हाई कोर्ट के इस फैसले से यह उम्मीद जगी है कि उत्तराखंड में कम से कम गाय सुरक्षित रहेंगी और उनके वध के इल्जाम में अब लोग नहीं मरेंगे।