उत्तर प्रदेश सरकार ने चुनाव के समय अपने वादों में एक वादा यह भी किया था कि वह बेगुनाह लोगों को जेल से रिहा करने के लिए मेहनत करेगी.
इसमें मुख्य रूप से एक ख़ास धर्म के लोगों को मुलायम जी ने रिझाने का प्रयास किया था.
वैसे यह तो सत्य है कि कोई भी बेगुनाह जेल में नहीं होना चाहिए. फिर चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लिम या सिख या इसाई. धर्मनिरपेक्ष देश में किसी एक धर्म के प्रति झुकाव कभी भी किसी एक राजनैतिक पार्टी को शोभा नहीं देता है.
लेकिन कोर्ट का अनादर भी एक सरकार को शोभा कतई नहीं देता है. एक बात आप जान लीजिये कि जितना निष्पक्ष हमारा कोर्ट है, उतनी ईमानदार हमारी राजनैतिक पार्टियाँ नहीं हैं.
बेशक कोर्ट का फैसला सबूत के चलते लेट हो जाते हैं किन्तु यह फैसले होते सत्य पर आधारित ही हैं.
अब ऐसे तो कई हिन्दू लोग भी सालों से कोर्ट में हैं और उनपर कोर्ट की सुनवाई जारी है तो क्या कोर्ट को सबको छोड़ देना चाहिये ताकि ये लोग समाज में लोगों के लिए भय उत्पन्न करने का काम करते रहें?
आपको शायद पता ना हो कि वाराणसी, लखनऊ तथा फैजाबाद की कोर्ट में 23 नवंबर 2007 में सिलसिलेवार बम धमाके किये गये थे. इनमें कुछ लोगों को अभियुक्त बनाया गया था जिनके नाम हैं- हरकत-उल-जेहाद-अल इस्लामी (हूजी) के संदिग्ध आतंकवादी खालिद मुजाहिद तथा तारिक काजमी. इनमें से खालिद मुजाहिद की मौत हो गई थी.
कोर्ट में जब यह मामला चल रहा था तब उत्तर प्रदेश की सरकार ने बहुत गलत कदम उठाया था. इन आंतकी हमलों में शामिल हूजी आतंकवादियों तारिक कुसामी और खालिद मुजाहिद को रिहा करवाने की घटिया हरकत इस सरकार ने की थी.
सरकार यह भूल गयी थी कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है. लेकिन यह सिर्फ हमारे मुसलमान भाइयों को बेवकूफ बनाने की मात्र एक चाल ही थी.
राज्य पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने यह दावा किया था कि हरकत-उल-जिहाद-अल इस्लामी के संदिग्ध आतंकवादी तारिक कासमी तथा खालिद मुजाहिद के पास से आरडीएक्स तथा डेटोनेटर मिले हैं.
अगर उत्तर प्रदेश सरकार को भरोसा था कि ये लोग बेगुनाह हैं तो सरकार को अर्जी के साथ शपथपत्र भी देना चाहिए था.
कोर्ट ने इनको रिहा करने से मना कर दिया था और अब 2015 में सभी सबूतों को देखते हुए कोर्ट का फैसला आया है कि तारिक काजमी इस केस में दोषी है और इन मामलों में तारिक काजमी को आजीवन कारावास तथा 50 हजार जुर्माना की सजा सुनाई गई है.
अब सवाल यह है कि क्या उत्तर प्रदेश सरकार पर कोई दबाव था जिसके कारण वह आतंकवादियों को रिहा कराना चाहती थी?
अगर कोर्ट अपना काम सही से नहीं करता तो आतंकवादी तो जेल से रिहा हो सकता था ना?
सरकार क्यों नहीं समझ पा रही है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है?
क्यों हमेशा देश के राजनेता मुस्लिम भाइयों को वोट बैंक की तरह प्रयोग करते हैं?
आपकी राय का इंतज़ार रहेगा.