यूपी का चुनाव – कोई कहे कुछ भी लेकिन यह तय है कि यूपी का चुनाव मुद्दों को नहीं मुसलमानों को केंद्र में रखकर लड़ा जाना है.
खासकर पश्चिमी यूपी का चुनाव में ध्रुवीकरण ही वह आधार होगा, जो पूरे प्रदेश की राजनीतिक दिशा तय करेगा.
इसका आगाज हो चुका है. मुजफ्फरनगर दंगों में आरोपी बनाए गए शामली की थाना भवन सीट से निवर्तमान भाजपा विधायक सुरेश राणा ने एक ऐसा बयान दिया है जिसके बाद इस क्षेत्र में चुनावी मुद्दा ही बदल गया है. सुरेश राणा ने एक जनसभा में कहा कि उनके चुनाव जीतने के अगले दिन देवबंद, कैराना और मुरादाबाद में कफ्र्यु लगवा दूंगा. भाजपा विधायक का यह कहना था कि इसने क्षेत्र के चुनावी माहौल को गरमा दिया.
कफ्र्यु किसी शहर में उसी स्तिथि में लगता है जब वहां पर हिंदू मुस्लिम या दो संप्रदायों के बीच दंगा हो जाता है.
जैसे ही ये बात आग की तरह फैली सुरेश राणा ने अपने बयान पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि कफ्र्यु से उनका मतलब गुंडो के खिलाफ कार्रवाई से हैं. राणा अब कुछ भी सफाई दें लेकिन उनको जो संदेश अपने मतदाताओं को देना था वो उन्होंने दे दिया.
वहीं दूसरी ओर भाजपा के एक अन्य फायर ब्रांड नेता योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तुलना कश्मीर से करके यहां चुनावी हवा का रूख ही मोड़ दिया है.
उत्तर प्रदेश के शामली जिले का कैराना कस्बा पिछले दिनों हिंदुओं के पलायन को लेकर काफी चर्चा में रहा था. कैराना से मुस्लिम अपराधियों के दवाब में हिंदू व्यापारियों के शहर छोड़ने की खबर ने पूरे भारत में सनसनी मचा दी थी.
लिहाजा उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार सपा के शासनकाल में दंगों का अनवरत सिलसिला चला है उसको देखते हुए भी यहीं लगता है कि कोई भी दल चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से परहेज नहीं करेगा.
उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिकता जड़ी कितनी गहरी हो चुकी है, इसका पता इस बात से भी चलता है कि सपा और बसपा में जहां मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देने की होड़ मची हुई है वहीं भाजपा के पास एक भी जीतने लायक मुस्लिम प्रत्याशी नहीं है.
सपा और बसपा की कोशिश जहां मुस्लिम मतों के धु्रवीकरण पर टिकी है तो वहीं भाजपा की उम्मीद हिंदुओं पर टिकी है. रही बात विकास की तो वह सिर्फ घोषणा पत्र तक ही सीमित है.