वर्ष 1965 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब देते हुए भारतीय सेना ने कब्जा कर पुंछ से उरी को जोड़ने वाले मुगल मार्ग को खोल दिया था. युद्ध से पहले पाकिस्तान ने उरी से ही हजारों घुसपैठिये भारत की सीमा के भीतर भेजे थे.
जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठी आजादी के बाद वर्ष 1948 में शुरू हो गई थी. तब से लेकर आज तक पाक इस रास्ते से घुसपैठ कराकर भारत में आतंकी भेजता रहा है.
दरअसल, आर्मी बेस कैंप के नजदीक से गुजरने वाले श्रीनगर-शांति सेतु-मुजफ्फराबाद रोड पर दोनों देशों में स्थानीय लोगों के घर हैं. इनमें छिप कर शादी-विवाह भी होते हैं. जिस कारण यहां सीमापार कर लोग एक दूसरे से मिलते जुलते रहते हैं. पूरा क्षेत्र घने जंगल से घिरा है, जिनमें शरण लेना आसान है.
उरी सेक्टर पाकिस्तानी सीमा से करीब 5 किमी दूर है.
भारत का यह आर्मी बेस कैंप जिस स्थान पर बना है वह स्थान तीन ओर ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घिरा है. इन पाहड़ियों पर पाकिस्तान की सेना के कैंप है. अर्थात यहां भारत की सेना ऊंचाई पर स्थित पाकिस्तानी सेना के मुकाबले मैदान पर है, जिस कारण पाकिस्तानी सेना को यहां टेक्टिकल बढ़त मिली हुई है.
उसकी नजर भारतीय सेना की हर गतिविधि पर रहती है.
दरअसल, उरी सेक्टर की भौगोलिक स्थिति एक बाउल की तरह है उसके तीन ओर पांडु हिल, किला ढेर, शख पोस्ट, हाजीपीर पास व बिडोरी चोटियां हैं. उरी सेक्टर के ठीक सामने दर्रा हाजीपीर है. यहां पर पाकिस्तान ने आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के लिए कैंप बना रखे हैं. 1965 में पाक ने उरी, हाजीपीर और पुंछ सेक्टर से हजारों की संख्या में घुसपैठिये देश की सीमा के भीतर भेजे थे.
उस वक्त जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय सेना ने यह पूरा सेक्टर कब्जे में लेकर इन इलाकों में बने पाकिस्तानी सेना के आतंकी प्रशिक्षण ठिकानों को उखाड़ फेंका था. लेकिन ताशकंद समझौते में इन सेक्टरों को वापस करना पड़ा.
जमीन वापस करने के बाद यह सभी चोटियां पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में चली गईं. जहां से पाकिस्तान की सेना उरी सेक्टर स्थित सेना के एडम बेस और उसके आस-पास के क्षेत्रों पर बराबर नजर रखती हैं. मेजर जनरल जेआर भट्टी इसे बड़ी सामरिक भूल मानते हैं.
सेना के अनुसार पठानकोट, काठूगा, सांबा, अरनिया, कालू चक व अखनूर में सिविलियन, पुलिस व सैन्य परिवारों पर अभी तक जितने भी आतंकी हमले हुए हैं उन हमलों में शामिल आतंकियों को दर्रा हाजीपीर सेक्टर से ही एलओसी पार कर सीमा में दाखिल कराया गया है, क्योंकि इसके दोनों ओर पहाड़ियों के बीच घने जंगलों के कारण यहां से सीमा में प्रवेश करना आसान हो जाता है.
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