उडी में सेना पर हमला – पहले गुरदासपुर फिर पठानकोट एअर बेस और अब जम्मू कश्मीर के उड़ी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास स्थित आर्मी हेडक्वॉर्टर पर हमला.
पाकिस्तान से आए आतंकवादी जिस प्रकार एक के बाद एक हमले कर नरेंद्र मोदी के धैर्य की परीक्षा ले रहे हैं उसको देखते हुए लगता है कि मोदी भी अब अपने धीरज का बांध तोड़ देना चाहते हैं.
पाकिस्तान के साथ वार्ताओं का प्रलाप करने से कभी शांति का संदेश नहीं आ सकता है, यह अब स्पष्ट हो चुका है.
यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश को जो आश्वासन दिया है कि उडी में सेना पर हमला हुआ उस हमले के दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा उनको सजा जरूर मिलेगी, इसे पाकिस्तान ही नहीं दुनिया के बाकी देशों में भी खलबली मचा दी है. वहीं देश आज भी मोदी और उनके आश्वसान पर भरोसा करता है.
देशवासियों को उम्मीद है कि सेना म्यांमार की तरह उडी में सेना पर हमला हुआ उसमें अपने सैनिकों की शहादत का बदला लेगी.
शायद यही वजह थी कि कल जम्मू कश्मीर के उड़ी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास स्थित आर्मी हेडक्वॉर्टर पर आतंकी हमले और उसमें 17 जवानों के शहीद होने की खबर दिल्ली पहुंची उसके बाद राजधानी दिल्ली में एकाएक सरगर्मी बढ़ गई.
प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठकों के कई दौर चले. इनमें कुछ गुप्त बैठके भी हुई.
पाकिस्तान और कश्मीर के अलगाववादियों को लेकर क्या नीति अपनाई जाए इसको लेकर भी चर्चा हुई. जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार केंद्र सरकार ने कश्मीर और आतंकवादियों को लेकर पहले से जारी अपने रूख और तेवरों को और सख्त कर लिया है. बताया जाता है कि सैनिकों की शहादत का बदला लेने के लिए जिन विकल्पों पर चर्चा हुई उसको बेहद गोपनीय रखा जा रहा है.
सरकार ने म्यांमार जैसी कार्रवाई के विकल्प पूरी तरह से खोलकर रखे हैं. सरकार के अंदर स्पष्ट मत है कि अब इसके लिए अंतरराष्ट्रीय दवाबों की भी परवाह नहीं की जाएगी.
कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार की नीति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार परिषद प्रमुख जैद अल हुसैन के कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति का पता करने के लिए वहां टीम भेजे जाने की मांग को खारिज कर दिया.
बताते चलें कि केंद्र सरकार ने श्रीनगर में एक के बाद एक जिस प्रकार सीआरपीएफ और सेना पर हमले हो रहे हैं उसको देखते हुए वहां सुरक्षा बलों को आतंकियों के सफाए के स्पष्ट निर्देश दिए हैं.
पांच दिन पहले ही भारतीय थलसेना ने आतंकवादियों के सफाये और प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए अपनी एक पूरी ब्रिगेड ही दक्षिण कश्मीर में भेज दी थी.
सरकार ने कश्मीर के हिंसा प्रभावित जिलों में आतंकियों सफाये के लिए ऑपरेशन काम डाउन शुरू किया है. इसके तहत थलसेना ने करीब 4,000 अतिरिक्त सैनिकों को इस अभियान के लिए भेजा है. ज्ञात हो कि इसके पहले सरकार वहां बीएसएफ को भी भेज चुकी है. यही नहीं, जुलाई में सीआरपीएफ के करीब 2000 अतिरिक्त जवान हिंसा प्रभावित कश्मीर घाटी भेजे गए हैं. इसके साथ 20 और कंपनियां घाटी में भेजी गई हैं. इससे पूर्व अगस्त में भी केंद्रीय पुलिस रिजर्व बल के 2800 जवान राज्य पुलिस की मदद के लिए भेजे गए थे।
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एनएन वोहरा ने भी इस सिलसिले में 15 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में बातचीत क्या हुई इसको सरकार ने गोपनीय रखा है.
आपको बता दे कि घाटी में जम्मू कश्मीर पुलिस सुरक्षा बलों के मिलकर एक अभियान चला रही है, जिसकी मीडिया को बहुत कम ही जानकारी दी जा रही है. यह अभियान रात के समय चलाया जाता है. पुलिस दिन में जिन पत्थरबाजों की वीडियों रिकार्डिंग करती है या उसके मुखबिर जिनके बारे में बताते हैं उनको रात में उठाकर थाने लाती है.
पहचान पुख्ता हो जाने पर उनको जेल में डाल देती हैं. एक सप्ताह में करीब दो हजार लोगों को पुलिस राउंडअप कर चुकी है. इससे घबराए घाटी के अलगाववादी इसका काफी विरोध रह हैं.
वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी लोगों के मन में उठ रहा है कि उडी में सेना पर हमला और आखिर कश्मीर में आतंकी हमलों में अचानक हुई इस तेजी के पीछे पाकिस्तान की क्या मंशा है?
कश्मीर को लेकर दुनिया में अलग थलग पड़ते जा रहे पाकिस्तान का सारा ध्यान संयुक्त राष्ट्र के 71वें अधिवेशन पर है, जो 20 सितंबर को शुरू होने वाला है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने स्वयं न्यूयार्क गए हुए हैं.
दरअसल, पठानकोट हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान से विदेश मंत्री स्तर की बातचीत बंद कर दी है. पाकिस्तान की मंशा है कि जैसे ही उड़ी में आतंकी हमले की खबर न्यूयार्क में जमा हुए विश्व के नेताओं तक पहुंचेगी वे तनाव को कम करने के लिए भारत और पाकिस्तान पर वार्ता करने के लिए दबाव बनाएंगे.
अपने न्यूयॉर्क दौरे पर जाने पहले नवाज शरीफ मुजफ्फराबाद में हुर्रियत नेताओं से मिलने गए थे और वहां से कश्मीर घाटी में प्रदर्शनकारियों को संकेत भेजा गया कि कंश्मीर के मुद्द को अंतरर्राष्ट्रीय मंच पर उठाने के लिए वहां आतंकी हमले किए जाए ताकि दुनिया के देशों और मीडिया का ध्यान इस ओर जाए।
जितना जल्द हो सके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए.
गुरदासपुर, पठानकोट और उड़ी में सेना पर हमले ने यह साफ कर दिया है कि भारत को कांटे से कांटा निकालने के अपने विकल्प पर ही ध्यान केंद्रित करना होगा.
बकरीद को कश्मीर के तथाकथित कल्याण के लिए समर्पित करने वाले पाकिस्तान से अब उडी में सेना पर हमला हुआ उसमें अपने सैनिकों की कुर्बानी का हिसाब करने का वक्त आ गया है.