उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ – उत्तर प्रदेश की जनता ने भाजपा को जिस उम्मीद से भारी मतों से विजयी बनाया था उसका फल योगी आदित्यनाथ के रूप उन्हें मिल ही गया.
योगी आदित्यनाथ उर्फ ‘अजय सिंह’ अब उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री होंगे. साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और लखनऊ के महापौर दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है.
इससे भाजपा ने प्रदेश में जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की है. हालांकि मंहत और सन्यासी होने के कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ जातीय टैग उस प्रकार से नहीं चिपका है जिस प्रकार से अन्य नेताओं के साथ. फिर भी इतने बड़े सूबे में भाजपा को न केवल जनता को संदेश देना था बल्कि दो साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को भी साधना था.
लेकिन उनके इस पद पर पहुंचने की दौड़ कोई कम कठिन नहीं थी. कट्टर हिंदुत्व की छवि वाले और भाजपा के स्टार प्रचारक रहे योगी आदित्यनाथ को लेकर भाजपा के भीतर ही कई मत थे.
सूत्र बतातें हैं कि भाजपा ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शुरू में उनकी छवि को लेकर पशोपेश में थे. लेकिन दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार कई स्थानीय छत्रप है उसको देखते हुए लगा कि भाजपा में नई पीढ़ी के नेताओं में केवल योगी आदित्यनाथ ही जो न केवल इन छत्रपों पर नियंत्रण कर सकते हैं बल्कि पार्टी को एकजुट भी रख सकते हैं.
गौरतलब है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा ने जिस प्रकार नए लोगों सीमए के लिए आगे किया उससे वहां पार्टी के लिए समस्याएं आई है. हरियाणा में तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को वहां के स्थानीय नेताओं से अक्सर चुनौती मिलती रहती है.
जाट आंदोलन में पार्टी और प्रदेश पर कमजोर पकड़ और कम अनुभव का भाजपा खामियाजा उठा ही चुकी है. लोकसभा और विधानसभा भाजपा को जीत दिलाने वाला जाट मतदाता आज भाजपा से दूर चला गया है.
भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में ये गलती नहीं दोहराना चाहते थे. क्योंकि करीब दो साल बाद देश में लोकसभा का चुनाव होना है और भाजपा को सबसे अधिक सीटें यूपी से ही मिली है.
योगी के मुख्यमंत्री बनने से यूपी में भाजपा को कम से कम इस समस्या का सामना तो नहीं करना पड़ेगा. क्योंकि हिंदुत्व की छवि के कारण सभी जातियों में उनकी पकड़ और सम्मान है. गोरक्षापीठ के उत्तराधिकारी होने के कारण उनका औरा भी काफी बड़ा है. उनमें सबको एकजुट करने की भी क्षमता है.
इसी को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने योगी को सीएम बनाने का दांव खेला है. साथ ही यदि योगी को सीएम नहीं बनाया जाता तो उसका न केवल पार्टी में बल्कि जनता में गलत संदेश जाता. आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी के बाद यूपी चुनाव में सबसे अधिक मांग योगी आदित्यनाथ की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी इस मांग को देखते हुए ही पश्चिमी यूपी में उनकी सभाएं तक बढ़वा दी थी.
इस तरह से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बने – यही वजह है कि आखिर भाजपा को योगी आदित्यनाथ के नाम पर मुहर लगानी पड़ी.