संघर्ष के दिनों की बात है . दो नौजवान एक स्टूडियो में मिले. एक को निर्देशक बनना था और दुसरे को अभिनेता. सिगरेट के दौर से शुरू हुआ बातों का सिलसिला ना जाने कब एक जिंदगी भर की दोस्ती में तब्दील हो गया. बैटन बातों में ही दोनों ने एक दुसरे से वादा किया कि दोनों में से जो भी पहले सफल होगा वो दुसरे की मदद करेगा. आगे जाकर दोनों ने कई बार साथ काम किया और कालजयी फिल्मे दी.
दोस्ती ऐसी की लगता था दो जिस्म एक जान है. वो दोनों संघर्षरत कलाकार थे भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन निर्देशक गुरुदत्त और देव आनंद.