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6000 करोड़ के कारोबारी ने अपने बेटे को 500 रूपये देकर भेजा नौकरी करने, फिर हुआ कुछ ऐसा

अज्ञातवास  –  अक्सर ऐसा होता है कि अमीर परिवार में पैदा होने की वजह से कुछ लोगों की ज़िदंगी इस तरह बीतती है कि वो ज़िंदगी को करीब से जान ही नहीं पाते हैं।

अपने आस-पास हरदम नौकर-चाकर, सुख-सुविधा देखने की इन्हे कुछ यूं आदत हो जाती है कि ये उसी को ज़िदंगी की सच्चाई समझ लेते हैं हालांकि विरासत में अगर आपको सुख, सम्पत्ति और ऐशो आराम मिला है तो इसमें कुछ गलत नहीं है लेकिन इतना ज़रूर है कि ऐसे लोग कभी भी ज़िदंगी की हकीकत को छू नहीं पाते हैं औऱ ना ही समझ पाते हैं जो कही ना कही उन्हे ही नुकसान पहुंचाता है।

जी हां, ये बात काफी हद तक सच है कि जो लोग ज़मीन से जुड़कर अपने करियर, बिजनेस की शुरूआत करते हैं उन्हे सफलता ज्यादा भाती है वही जो लोग शुरूआती दौर से ही सभी साधनों से सम्पन्न रहते हैं वो ज़िदंगी को सही ढ़ंग से नहीं जान पाते.

इसी बात को समझते हुए एक 6000 करोड़ के कारोबारी ने कुछ ऐसा किया जिसे देखकर  सभी दंग हैं।

6 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति के मालिक हीरा व्यापारी घनश्याम भाई ढोलकिया ने अपने 23 साल के बेटे हितार्थ को सिर्फ 500 रुपए देकर घर से दूर अज्ञातवास में हैदराबाद भेज दिया ताकि वो कारोबार के क्षेत्र में कदम रखने से पहले आम आदमी की ज़रूरतों औऱ उनकी परेशानियों को समझ सके और उसके बाद ही कारोबार में कदम ऱखें।

अपने अनुभव को साझा करते हुए उनके बेटे बताता हैं कि उन्हे जॉब करके दिखाना था और एक जगह पर सिर्फ एक हफ्ते तक जॉब करनी थी। उन्होंने बेटे को मोबाइल दिया और ही एटीएम कार्ड दिया। हितार्थ हाल ही में एक महीने जॉब करने के बाद 5000 रूपये की बचत करके हितार्थ घर लौटे हैं औऱ अपने इस अचीवमेंट से काफी खुश हैं।

वो बताते हैं कि इस अज्ञातवास दौरान उन्हे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, आईडी कार्ड ना होने की वजह से उन्हे रहने को जगह भी नहीं मिल पा रही थी और जेब में पैसे कम होने की वजह से उन्होने पहली बार ठेले से खाना भी खाया और इस अनुभव को एज्वॉय किया । वो बताते हैं कि इस दौरान उन्होने सबसे पहले मैकडॉनल्ड में नौकरी की और फिर दूसरी नौकरी उन्हे व्हाइट बोर्ड बनाने वाले कारखाने में मिली। इसके बाद उन्होने एडिडास में काम किया। वो बताते हैं कि दिन भर नौकरी की थकान के बाद उन्हे एहसास हुआ कि ये इतना भी सरल नहीं है। हितार्थ का कहना है कि इन दो नौकरियों से मैंने सीखा कि मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं है।

हितार्थ बताते हैं कि उनके पिता घनश्याम के अनुसार उनके परिवार में यह परंपरा है। हमारे यहां बच्चों को अज्ञातवास पर भेजते हैं। ताकि वे मूल्यों को समझ सकें।

वैसे ये बात काफी हद तक सच है और बाकी सब के लिए भी एक बढ़िया मिसाल कायम करती है कि हमें अपने बच्‍चों को मेहनत करनी और पैसों की कीमत जानना जरूर सिखाना चाहिए। उन्हें अज्ञातवास भेजना चाहिए.

Namrata Shastri

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Namrata Shastri

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