उमा माता का मंदिर – माता पार्वती ने शिवजी को पति के रुप में पाने के लिए सालों तक घोर तप किया था.
भगवान शिव उनकी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुए तब जाकर दोनों का विवाह संपन्न हुआ.
इस कथा को तकरीबन सभी लोग जानते हैं लेकिन माता पार्वती ने घोर तपस्या जिस पावन स्थल पर की थी उसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे.
आज हम आपको देश के एक ऐसे इकलौते मंदिर से रूबरू करवाएंगे, जहां उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था.
कर्णप्रयाग में स्थित है उमा माता का मंदिर
उत्तराखंड के जनपद चमोली के कर्णप्रयाग स्थित अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम स्थल के पास मौजूद है उमा माता का मंदिर.
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि देशभर में यह एकमात्र ऐसा पवित्र स्थान है, जहां माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए अपर्णा रूप में निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव की उपासना की थी.
यहां माता पार्वती की पूजा कात्यायनी स्वरुप में की जाती है. माना जाता है कि उनका यह स्वरुप मां दुर्गा के नौ स्वरुपों में से एक है.
उमा माता का मंदिर जिसमे रोज़ाना दर्शन करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है लेकिन नवरात्र के मौके पर इस मंदिर का नज़ारा और भी भव्य हो जाता है. कहा जाता है कि नवरात्र के मौके पर यहां दर्शन मात्र से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है.
माता के मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने आठवी शताब्दी में की थी. इस मंदिर को लेकर मान्यता यह भी है कि यहां स्थापित उमा देवी की मूर्ति इससे भी काफी पहले से मौजूद है.
इस इलाके के डिमरी ब्राह्मणों के घर को उमा देवी का मायका भी माना जाता है क्योंकि कहा जाता है कि डिमरी ब्राह्मणों को सपने में दर्शन देकर स्वयं उमा देवी ने अपनी प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया था.
गौरतलब है कि यहां नवरात्र के समय आनेवाले भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है.
उमा माता का मंदिर जहाँ आनेवाले सभी भक्त आराम से संगम और उमा देवी के दर्शन कर सकते हैं और इसके बाद कर्णप्रयाग शहर के आकर्षक नज़ारों के बीच घूमने का लुत्फ भी उठा सकते हैं.