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बलात्कार की पुष्टि करता है ‘टू फिंगर टेस्ट’ ! यह टेस्ट एक अत्याचार होता है पीड़ित महिलाओं के लिए

ऐसी लड़कियां और महिलाएं हैं भारत देश में काफी संख्या में हैं जो टू फिंगर टैस्ट का दर्द झेल चुकी हैं.

यह कहने में कितना आसान लगता है लेकिन रेप का दर्द झेलने के बाद तब मेडिकल जांच होती है तो पीड़ित का टू फिंगर टेस्ट होता है.

यह टेस्ट जो सिद्ध करता है कि क्या रेप हुआ है?

देश के विभिन्न हिस्सों में आए दिन बलात्कार की घटनाएं घट रही हैं. बलात्कार की पुष्टि के लिए विवादित टू फिंगर टैस्ट यानी टीएफटी की पद्धति अपनाई जाती रही है, जिस को ले कर लंबे समय से सवाल उठाए जाते रहे हैं.

देश में कोई भी इस तरह की सरकार नहीं आई है जो इस टेस्ट को सिरे से खत्म कर दे. आज इस मुद्दे को हम जनता के सामने उठा रहे हैं.

मुद्दा है कि क्या रेप की पीड़ित महिला या लड़की का टू फिंगर टेस्ट से यह मेडिकल जांच करना, उस महिला का और अपमान नहीं है?

क्या उस वक़्त महिला या लड़की के  दर्द को यह समाज नहीं समझ पा रहा है?

क्या डॉक्टर के लिए यह सिर्फ एक मजाकी प्रक्रिया ही है?

ना जाने क्यों देश के अन्दर इस तरह के अमानवीय व्यवहार को बंद करने का जिम्मा कोई भी सरकार नहीं ले पा रही है. बड़ा दुःख होता है जब देश के कुछ हिस्सों से खबर आती है कि यह टू फिंगर टेस्ट भी पुरुष डॉक्टर द्वारा किया गया.

क्या होता है टू फिंगर टेस्ट

इस परीक्षण में महिला की योनि का टेस्ट इस धारणा के साथ किया जाता है कि संभोग के परिणामस्वरूप इसमें मौजूद हाइमन यानी योनिच्छद फट गया है या नहीं. इसमें डॉक्टर उंगलियों की संख्या के आधार पर बताते हैं कि महिला के साथ यौन संबंध बने हैं या नहीं. महिला की योनि में उँगलियों का प्रवेश किया जाता है और इस दर्द को भी एक महिला को झेलना पड़ता है. जहाँ एक तरफ समाज रेप को लेकर महिलाओं की लड़ाई लड़ रहा है वहीँ इस मुद्दे पर कुछ खास काम नहीं हो रहा है.

रेप पीड़ित के लिए यह एक और जख्म ही है

आपको यहाँ बताते चले कि पुराने समय में अफ्रीकी देशों के अन्दर कौमार्य परीक्षण के लिये यह परीक्षण किया जाता था. कई देशों में जहां वर्जिनिटी टेस्ट आम बात है, इसी टेस्ट से वर्जिनिटी टेस्ट किया जाता है.

भारत के अन्दर कोर्ट ने डॉक्टर्स को यह सलाह तो दे रखी है कि इस तरह का परीक्षण ना हो किन्तु आज भी देश के कई राज्यों में टू फिंगर टेस्ट से रेप का पता लगाया जा रहा है.

लेकिन शायद अब वह वक़्त आ गया है जब रेप पीड़ित महिला और लड़की का यह टेस्ट खत्म कर उसकी जगह किसी अन्य तकनीक को लागू किया जाए.

‘रेप किट’ लागू की जाए

शिकागो में बलात्कार की जांच करने के लिए सन 1978 में सबसे पहले रेप किट का प्रयोग किया गया था. इसमें रेप की मेडिकल पुष्टि के लिए सभी जरुरी उपकरण होते हैं.

इसके प्रयोग के समय किसी प्रकार का दर्द भी नहीं होता है.

लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि देश की कोई भी सरकार इनको खरीदने के लिए पहल करती नहीं दिखती है.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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