दिवाली के 11 दिनों बाद शुक्ल पक्ष की एकदशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है.
इस दिन को देव दिवाली के रूप में मनाया जाता है.
कार्तिक मॉस की शुक्ल पक्ष एकदशी को साल भर में सबसे शुभ दिन मना जाता है, इस दिन कोई भी कार्य करने से पहले मुहूर्त या समय देखने की ज़रूरत नहीं होती. एकादशी के दिन, दिन का एक एक क्षण शुद्ध और शुभ महूर्त वाला होता है.
देव उठनी एकदशी से पहले के चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है. इसकी शुरुआत होती है देव शयनी एकादशी से.
शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकदशी के बाद चार महीनों तक सब शुभकारी वर्जित होते है. ये चार मास सिर्फ भगवान् के भजन और ध्यान में लगाने चाहिए. इन चार मास में ना ही विवाह मुहूर्त होते है ना ही गृह प्रवेश या अन्य पूजन अनुष्ठान. माना जाता है कि ये चार मास का समय वो होता है जिस समय भगवान विष्णु शयन करते है.
चार महीने बाद जब विष्णु निंद्रा से जागते है उस दिन को देव दिवाली या देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है और इस दिन से सभी शुभ कार्य करने की शुरुआत होती है.
इस एकादशी का बहुत महत्व होता है, इस दिन मंत्र सिद्धि द्वारा किसी भी शक्ति को जगाया जा सकता है. इस दिन शुरू किये गए शुभ कार्य भली प्रकार फलीभूत होते है.
देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में भी मनाया जाता है.
कहा जाता है कि निंद्रा से जागने के बात भगवान सबसे पहले तुलसी की बात सुनते है. इसीलिए तुलसी विवाह के माध्यम से श्रद्धालु भगवान् विष्णु तक अपनी बात पहुंचाते है.
तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप के साथ किया जाता है. हमारे देश के उत्तरी और पश्चिमी भाग में देवउठनी एकदशी को विशेष रूप से मनाया जाता है. तुलसी का विवाह पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. विवाह के लिए घर को सजाया जाता है, भांति भांति के पकवान बनाये जाते है. दिन में व्रत रखकर तुलसी विवाह की कथा सुनी जाती है और शाम को तुलसी का विवाह कराकर व्रत खोला जाता है.
कल देवउठनी एकादशी के दिन देव अपनी चातुर्मास निंद्रा से जाग उठे है अब शुभ कार्य और नए कार्य शुरू करने के लिए शुभ मुहूर्त है. इसीलिए हमारे देश में अधिकतर विवाह देवउठनी एकादशी से शुरू होते है.