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पार हुई विश्वास की सीमा देखने को मिला अंधविश्वास का नमूना

विश्वास – यूँ तो बड़ा छोटासा शब्द है. कहने और पढने में पल भर भी नहीं लगते है. लेकिन सोचो और समझो तोह मर्म इतना गहरा है की साबित करने में ज़िन्दगी लग जाती है.

विश्वास जिसे जितने के लिए पूरी ज़िन्दगी गुजर जाती है पर इसे तोड़ने के लिए पल भर मात्र भी नहीं लगते. इस विश्वास के बलबूते नजाने कितना कुछ हासिल कर लेना आसान है. जिसे जितने के लिए इंसान को नजाने कितने कठिन संघर्षों से गुजरना पड़ता है.

कही बार देखा जाये तोह रिश्तों से विश्वास और विश्वास से जिम्मेदारी जुडी होती है. इनमे  से किसी में भी अगर उलट पुलट हो जाये तोह खुशियों भरी ज़िन्दगी का बैलेंस बिगड़ जाता है. वैसे देखा जाये तोह विश्वास का पलड़ा हमेशा सबसे ऊपर रहा है. क्योंकि पराया आदमी जिस पर विश्वास हो ज़रूरी नहीं की वोह धोखा दे. और हमारा रिश्तेदार जिस पर हमारा विश्वास हो वोह धोखा दे. क्योंकि पैसों के लिए विश्वास तोडना आजकल के ज़माने में बहुत आम बात है.

लेकिन आज भी हम कुछ ऐसे लोगों से मिलते है जो कुछ अजीब सी चीजों पर विश्वास करते है..

यहाँ में बात कर रहा हूँ अंधविश्वास की……

अंधविश्वास….. अपने अजीब से कर्मों से जीवन में सफलता के मिलने की उम्मीद

जैसे अपनी लंबी उम्र के लिए किसी बच्चे की बली

जानवरों की बली देकर भगवान को प्रसन्न करने की परंपरा

और नजाने कितने सरे ऐसे कर्म है जिस से हम पूरी तरह से वाकिफ नहीं है. पर जब भी कभी ऐसे वाकया सुनने मिलते है दिमाग सुन्न हो जाता है.

क्या ऐसा करना जायज है…… क्या ऐसा होता है या फिर यही अंधविश्वास के लिए जिम्मेदार है

अगर किसी की बली चढाने से उम्र लंबी हो जाती तो आजकल भ्रूण हत्या तो भारी तादाद में हो रही है तो डॉक्टर्स कितने लंबे वक्त तक जीते जिनके पास इस काम का डायरेक्ट ट्रिगर है.

बात करे भगवान को प्रसन्न करने की तो नजाने कितने सारे मार्ग है किसी बेजुबान जानवर की बली का सहारा लेना किस प्रकार की भक्ति है ?

आजकल की मनुष्यजाति; हो रही है दूसरों की बुराइयों की प्यासी,

आधुनिक युग में पूरा शरीर गया; पर दिमाग से….. अंधविश्वासी ||

लेकिन हम इंसानों को अब बदलना होगा क्योंकि ये अंधविश्वास हमारे समाज का खोखलापन है. ये दूसरों को मिटनेवाला है हमे इसे एकजुट होकर जड़ से मिटाना चाहिए.

अगर इंसान को अपने आप पर ;अपनी मेहनत पर गहरा विश्वास हो तो अंधविश्वास की बली देकर सत्य पर विजय पा सकता है. ना ही विश्वास पर अंधविश्वास जताओ और ना ही अंधविश्वास पर विश्वास जताओ क्योंकि ज़िन्दगी में कुछ चीजे जहाँ पर है वही अच्छे है.

सबसे पहले आता है भय…..

भय अंधविश्वास का मुख्य स्रोत है, और क्रूरता के मुख्य स्रोतों में से एक है. भय को हराने के लिए ज्ञान से शुरुआत करनी चाहिए.

विश्वास की सिमा

मैं यह साबित भी नहीं करना चाहता हूं कि कोई भगवान नहीं है। और न ही ये साबित कर सकता हूँ की शैतान एक कथा है। अगर हिंदू देवी देवता है तो क्रिस्चियन धर्मपिता भी है. और अगर क्रिस्चियन धर्मपिता है तो अल्लाह भी है. हम किसी धर्म को ऊपर नहीं रख सकते क्योंकि जब विश्वास की सिमा बढ़ जाती है तो वह अंधविश्वास का रूप ले लेता है.

इंसान को अपने मन को दर्पण की तरह साफ़ रखना चाहिए. हम जितना ज्यादा अंधविश्वास की तरफ कदम बढ़ाएंगे अंधविश्वास उससे दुगनी गति से हमे अपनी तरफ खींचते जायेगा

वैसे किसी ने क्या खूब कहा गया है की इंसान खुद ही है अपने जीवन का वास्तुकार

हो भी क्यों न क्योंकि हम जो आज करते है उसी पर हमारा कल निर्भर करता है. और हा विस्वास दिल से किया जाता है जुबान से खाली वह शब्द सुनाया जाता है.

Prashant Koli

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