संबंध

सच्चा प्रेमी मतलब एक सुनक्कड़

सच्चा प्रेमी – क्या प्रेम किसी सिल्वर फिश की कुतरी हुई उस किताब की तरह है जो अपनी अजीब-सी गंध होते हुए भी शेल्फ के अंदर से बार-बार अपने पास बुलाती है?

या प्रेम घर के किसी कोने में पड़ी सीलन-भरी पुरानी टी-शर्ट की तरह है, जिसे न कोई पहनता है, न फेंक पाता है और न ही किसी को दे पाता है. फिर सवाल कौंधता है कि प्रेम क्या अतीत से जुड़ी यादें हैं, कुछ इशारे हैं जो न जाने कब, कहां खो गए हैं. किसी की स्मृती, किसी को मिस करना, अतीत की अच्छी लगने वाली बातों में खो जाना, यही प्रेम है क्या?

प्रेम इतना लोडेड शब्द है कि आजतक न जाने कितनी तरह से इसका इस्तेमाल होता रहता है पर ये लगातार कम होता दिखाई देता है. तो क्या समझा जाए कि बाकी शब्दों की तरह क्या प्यार भी अपना अर्थ खो बैठा है?

लगता है जैसे ‘सुनना’ प्रेम का निकटतम पर्याय है. शांत होकर सुनना, किसी को भी सुनना, बगैर किसी बेचैनी के. भले ही कोई बात कितनी ही बेतुकी क्यों न लगे. क्या शांत हो कर इसे सुना जा सकता है?

सुनने से ही सच और झूठ अलग-अलग हो पाते हैं. सच्चा प्रेमी ज़रूर असली सुनक्कड़ होता होगा.

भीड़ की अफरा-तफरी में भी खुद के साथ ठहर जाना, अपने भीतर के किसी अनछुए कोने के स्पर्श में बने रहना प्रेम है. सड़क के किनारे पड़े किसी बीमार, निरीह चौपाये को देख कर आँखें नम हो जाएं, किसी भूखे-नंगे गरीब को देख कर खुद पर शर्म आने लगे तो इसका मतलब है कि आप प्रेम में हैं.

प्रेम है रास्तों पर बेतरतीब उगे पेड़ों को छू-छू कर चलने में. देखने और महसूस करने में. तैरना क्या होता है, ये मालूम न होने पर भी किसी अज्ञात-सी अनुभूति में छलांग लगा लेना उसमें डूबना-उतराना प्यार है. बस हर वक़्त दिल के किसी कोने में कोई इंतज़ार धड़कता रहे, धड़कनों के साथ-साथ. ऐसे किसी का इंतज़ार जिसे आप जानते भी न हों, न ही कभी मिले हों, न मिलने की कोई उम्मीद ही हो. प्रेम की किसी भी पूर्वनिर्मित, धर्मसम्मत परिभाषा पर भरोसा न करने को भी मैं प्यार ही मानता हूँ.

पल-पल बनते संबंधों के आईने में अपने अहंकार की उपस्थिति के प्रति जगे रहना भी प्रेम है. प्रेम रोमांस नहीं और न ही सेक्स से उपजा सुख है. ये उसका हिस्सा मात्र ज़रूर हो सकते हैं लेकिन प्रेम इनसे कुछ अलग ही अनुभूति देता हुआ लगता है. प्रेम को किसी भी परिपाटी में बांटना प्रेम का अपमान है. प्रेम तो वो दैवी गुण है जो हम सबमें विद्यमान है पर हम उसे समझना ही नहीं चाहते और शरीर के मोह को ही प्रेम का सूचक बतला देते हैं. ऐसे में हम अपनी ही विमुणता का परिचय देते हुए से लगते हैं.

सच्चा प्रेमी – प्रेम में ये समझना ज़रूरी है कि जो आपके सामने वाला शख्स आपसे बोल रहा है उसे आप सुनें.

सुनें भी तो ऐसे कि कोई बात उसकी अनसुनी न रह जाए. क्योंकि जब आप सामने वाले को ठीक से और धैर्य से सुनेंगे ही नहीं तबतक उसे आप जान भी कैसे पाएंगे? जान नहीं पाएंगे तो प्रेम की पहली सीढ़ी कैसे पार कर पाएंगे? इसलिए एक अच्छे प्रेमी का ‘सुनक्कड़’ होना ज़रूरी है.

Devansh Tripathi

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