जिंदगी का आनंद – पद मिल जाना, संपत्ति मिल जाना, मनचाही इच्छाएं पूरी हो जाना.
तुम इश्वर को कम और खुदको सर्वश्रेष्ठ मानते हो पर फिरभी अपने मन की अशांति को दूर नहीं कर पाते?
ये हमें नहीं भूलना चाहिए कि ये सब पद या वैभव हमेशा के लिए साथ नहीं दे पातेI ये सारे वैभवों का संग्रह इश्वर की कृपा से हुआ है जिसको तुम अस्तित्वहीन मानते होI जो दानी है, वही दाता है, दाता ही विधाता हैI दाता दान, दया, सहायता, पुण्य, सहयोग, परोपकार से असली खुशियां प्राप्त करता हैI अपने सर्वत्र आनंद ही आनंद बटोरता हैI
व्यक्ति आसक्ति के चंगुल में संग्रही बिखारी या याचक बनकर संग्रह मद के भंवर में डूबकर अपने कुत्सित विचारों से जीव-जगत का अहित करता रहता हैI उसे एक अजीब सा खौफ डराता रहता हैI उसे अच्छाई में भी बुराई की विषबेल दिखती हैI इंसान को समझना चाहिए कि जब संसार के सभी पद एवं मद अस्थाई हैं तो फिर सुख कैसे स्थाई हो सकता है?
सच्ची शांति तो सिर्फ प्रभु के चरणों में ही हैI
स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि दूसरों के प्रति हमारे कर्तव्यों का अर्थ है- दूसरों की सहायता करनाI संसार का भला कैसे हो इस बारे में विचार करते रहनाI अब सवाल उठता है कि हम संसार का भला क्यूँ करें?
किसी का भला करते वक़्त अगर हम ऊपर से देखें तो हम अपना उपकार कर रहे होते हैं पर असल में हम खुद का ही उपकार कर रहे होते हैंI हमें हमेशा संसार के उपकार करने की ही कोशिश करनी चाहिए एवं कार्य करने का यही हमारा सर्वोच्च उद्देश्य भी होना चाहिएI ये संसार इसलिए नहीं बना कि तुम आकर इसकी सहायता करो बल्कि सच तो ये है कि इस संसार में बहुत दुख व कष्ट है इसीलिए लोगों की सहायता करना ही हमारा मूल कर्तव्य होना चाहिएI
संसार की सहायता करने की खोखली बातों को आज अपने मनों से निकाल देने की ज़रूरत हैI
स्वामी विवेकानंद के अनुसार, ये संसार किसी की सहायता का भूखा नहीं है फिर चाहे बात तुम्हारी हो या मेरीI पर फिरभी हमें ऐसे ही परोपकार करते रहना चाहिएI इसलिए कि आखिर में इसमें हमारा ही भला होगाI यही एक साधन है जिससे जिंदगी का आनंद मिलता है, हम पूर्णता को प्राप्त हो सकते हैंI यदि हम किसी गरीब को कुछ देते हैं तो वास्तव में हम पर उसका आभार है कि हमें उसने वो अवसर दिया कि हम अपनी दया की भावना को कार्य में ला सकेI वहीं, ये सोचना भूल है कि हमने दया दिखाकर संसार का भला कर दिया क्योंकि ऐसा ही सोचकर व्यक्ति के अंदर दुख उत्पन्न होता हैI हमारी आदत हो गई है कि हम खुदसे ये चाहने लग जाते हैं कि किसी की सहायता करने के बाद वो हमें धन्यवाद दे, पर जब सामने वाला व्यक्ति धन्यवाद नहीं देता तो हमें दुख की अनुभूति होती हैI
स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि यदि हम सदैव ये ध्यान रखें कि दूसरों की सहायता करना सौभाग्य है तो परोपकार करने की इच्छा एक सर्वोत्तम प्रेरणा शक्ति बन सकती हैI जिंदगी का आनंद दे सकती है. एक ऊंचें स्थान पर खड़े होकर ये न कहो, ‘ऐ भिखारी, ले, मैं तुझे यह देता हूँI’ व्यक्ति को आभारी होना चाहिए उस बिखारी का जिसके कारण उसे दानी बनने का सुअवसर मिलाI
जिंदगी का आनंद – वैसे भी हम कुछ भी करें, उसके बदले में आशा क्यूँ रखते हैं? मनुष्य की सहायता द्वारा ईश्वर की उपासना करना क्या हमारा परम सौभाग्य नहीं है? अनासक्त होने पर हम प्रसन्नतापूर्वक संसार में भलाई कर सकते हैं व ऐसे किए गए कार्यों से जीवन में कभी भी दुख या अशांति नहीं आतीI ये संसार चरित्रगठन की एक विशाल व्यायामशाला ही तो है जिसमें हम सभीको कसरत करनी चाहिएI जिससे हमें आध्यात्मिक बल मिलेI
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