जिसका ना कोई अंत है और ना ही कोई आरंभ वो अनादि भगवान शिव सृष्टि के संहारक माने जाते हैं. वैसे भगवान शिव को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.
भगवान शिव से जुड़ी सभी पौराणिक कथाओं को प्रमाणित करने वाले साक्ष्य आज भी इस धरती पर मौजूद हैं. महादेव की इन अनगिनत गाथाओं में आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसी गाथा,जिसका प्रमाण आज भी उस घटनाक्रम की गवाही देता है.
जी हां, भगवान शिव का प्रिय त्रिशूल जो सदा उनके हाथों की शोभा बढ़ाता है उसी त्रिशूल का अंश जम्मू कश्मीर की एक पावन भूमि पर आज भी मौजूद है.
पटनीटॉप में स्थित है सुध महादेव मंदिर
धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले जम्मू-कश्मीर के पटनीटॉप में समुद्र तल से करीब 1225 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सुध महादेव मंदिर में आज भी भगवान शिव के त्रिशूल का अंश देखने को मिलता है.
महादेव के प्रमुख मंदिरों में शामिल 2800 साल पुराने सुध महादेव मंदिर का पुनर्निर्माण लगभग एक शताब्दी पूर्व एक स्थानीय निवासी रामदास महाजन और उसके पुत्रों ने करवाया था.
त्रिशूल से किया था राक्षस सुधान्त पर प्रहार
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पार्वती जी मानतलाई से रोज पूजा करने के लिए इस मंदिर में आती थीं. अचानक एक दिन वहां महादेव का भक्त सुधान्त नामक राक्षस आ गया. पूजा करते देख उसने माता पार्वती से बात करने की इच्छा जाहिर की. लेकिन जैसे ही पार्वती ने आंखें खोलीं उस राक्षस को देखते ही घबराकर चीख पड़ीं.
माता पार्वती की चीख कैलाश में ध्यानमग्न शिव तक पहुंच गई. जिसके बाद शिवजी ने अपने त्रिशूल से सुधान्त राक्षस की ओर प्रहार किया. वह त्रिशूल सीधे जाकर उस राक्षस के सीने में लगा.
जब शिव जी को इस बात पता चला कि सुधान्त दानव पार्वती जी को कोई चोट नहीं पहुंचाना चाहता था तब उन्हें अहसास हुआ कि उनसे गलती हो गई है. जिसके बाद शिव जी ने सुधान्त राक्षस से क्षमा मांगकर उसे फिर से जीवित करने की इच्छा व्यक्त की. लेकिन सुधान्त दानव ने शिवजी से कहा कि वो सदैव उनके हाथों से ही मोक्ष पाना चाहता था.
इस मंदिर में मौजूद है त्रिशूल का अंश
भगवान शिव ने इसी जगह पर सुधान्त राक्षस पर अपने त्रिशूल से प्रहार किया था इसलिए इस जगह का नाम सुध महादेव मंदिर पड़ा. इसके साथ ही महादेव ने त्रिशूल के तीन टुकड़े करके मंदिर में गाड़ दिए जिसके अंश आज भी इस मंदिर में मौजूद हैं.
इसमें सबसे बड़ा हिस्सा त्रिशूल के ऊपर वाला हिस्सा है, मध्यम आकार वाला बीच का हिस्सा है तथा सबसे नीचे का हिस्सा सबसे छोटा है जो की पहले थोड़ा सा जमीन के ऊपर दिखाई देता था. लेकिन मंदिर के अंदर टाइल्स लगाने की वजह से वो हिस्सा फर्श के बराबर हो गया है.
माना जाता है की मंदिर में एक जगह ऐसी भी है जहां सुधान्त की अस्थियां रखी हुई हैं इसके अलावा यहां एक पाप नाशनी जलधारा बहती है जिसके पानी में स्नान करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं.
गौरतलब है कि इस मंदिर में आनेवाले भक्त मंदिर में प्रवेश करने से पहले इस जल में स्नान करते हैं और फिर इस मंदिर में जाकर बाबा के साथ-साथ उनके त्रिशूल के अंश के भी दर्शन करते हैं.
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