“सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहाँ? जिदगी गर कुछ रही तो, नौजवानी फिर कहा?”
भारत कभी घुमक्कड़ों का देश हुआ करता था.
व्यक्ति हिमालय से शुरू होता था चलना और कन्याकुमारी तक जाता था. ऊपर वाले ने बड़े प्यार से इस देश को बनाया. तभी तो कहते हैं कि गर किसी ने भारत घूम लिया तो वह समझे की उसने पूरा विश्व घूम लिया.
पर आज हमारे देश से घुमक्कड़ लोगों की प्रजाती खत्म हो चुकी है. अब तो गिनती के दो-चार लोग ही बचे हैं, जिन्हें हम अपनी उँगलियों पर गिन सकते हैं.
ऐसे ही एक व्यक्ति है प्रशांत एन. गोलवलकर। प्रशांत ने लगातार 11 वर्षों तक अमरनाथ तथा वैष्णों देवी की पैदल यात्रा की। भोपाल से नेपाल 2700 किमी की यात्रा साईकिल से लगभग 25 दिनों में पूरी की।
सन् 1985 से अब तक साईकिल से लगभग पांच लाख किमी से ज्यादा की यात्रा तय कर चुके हैं। इस यात्रा में विश्व के 108 देशों से अधिक देशों की यात्रा शामिल है। अपने इस सफर में प्रंशात जिन देशों की यात्रा कर चुके हैं उनमें प्रमुख हैं- टर्की, बुल्गारिया, ग्रीस, यूगोस्लाविया, हंगरी, आस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड, इटली, मोनाको, फ्रांस , इंग्लैंड, नीदरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, स्पेन आदि.
प्रशांत जब 23 साल के थे, तब वह अच्छी-खासी नौकरी बैंक में कर रहे थे. लेकिन इनका मन कहीं और ही लगा हुआ था. दिल हमेशा कहता कि इन बंद दीवारों से बाहर निकलना है. ‘बैंक आफ महाराष्ट्र’ से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ली और निकल लिये दुनिया देखने.
प्रशांत कहते हैं कि जब इनकी माँ का देहांत हुआ, वह वक़्त इनके लिए काफी बुरा था. इनका कहीं भी दिल नहीं लगता था. घंटों बैठे रहते थे एक ही जगह, क्या पता कि क्या सोचता रहता था. फिर एक दिन निकल लिया घर से. भगवान को पाने की दिल में चाहत थी, तो पहले अमरनाथ और वैष्णों देवी गया. वहां से लौटकर साईकिल से घुमने का दिल हुआ. अब लगने लगा था कि दिल में जो ख्वाब है, उसको पूरा करना चाहिये, इसलिए साईकिल से निकल लिया दुनिया देखने.
प्रशांत टर्की की यात्रा को याद कर कहते हैं कि मुझे देखकर टर्की के कुत्ते काफी भौंकते थे जिसके पीछे प्रमुख कारण शायद यही था कि टर्की की सड़कों पर साईकिल थी ही नहीं, कुत्तों ने साईकिल को शायद देखा ही नहीं था। साम्यवादी व्यवस्था वाले देशों में जब प्रशांत गए तो उन्हें पता चला कि साम्यवादी सत्ता के दुष्परिणामों से वहां के लोग परिचित हैं और भारतीय संस्कृति में थोड़ी रूचि ज्यादा रखते हैं।
प्रशांत जी की तरह ही उनकी साईकिल भी एक अचंभा है, यह साईकिल ‘मेड इन वर्ल्ड’ की उपाधि प्राप्त एक साईकिल है क्योकि इनकी इस साईकिल में फ्रेम जापान का है, सीट सिंगापुर की, आगे का टायर कनाडा, पिछला टायर भारत, केरियर स्वीस का, पेडल थायलैंड तथा ताला अमेरिका का है।
इस विश्व भ्रमण के पीछे प्रमुख कार्य हैं- विश्व शांति व मानवता का प्रचार, परस्पर प्रेम तथा सहिष्णुता का संदेश देना एवं भिन्न-भिन्न देशों के परिवेश को समझना, जिसमें एक हद तक प्रशांत सफल भी हो चुके हैं।