12. हाईवे-
फ़िल्म लव बाय चांस की थीम पर बेस्ड थी. इस फ़िल्म में आलिया को अपने किडनेपर से ही लव हो जाता है. लेकिन रणदीप हुड़ा की मौत बाद ये कहानी अधूरी ही रह जाती है.
वैसे तो बॉलीवुड में कई फ़िल्मों में सेड एडिंग दिखाई गई है लेकिन बहुत ही कम फ़िल्में ऐसी है जो दिल को छू जाती है.
ज्यादातर इन फ़िल्मों की कहानी में एक्सपेरिमेंट जैसे सस्पेंस थ्रिलर और बहुत ज्यादा कॉमेडी की गुजाईंश बहुत कम होती है. ऐसे में सारा दारोमदार एक्टिंग डॉयलॉग और म्यूजिक पर चला जाता है ऐसे में इन तीन पहलुओं पर ध्यान देने की बहुत जरुरत होती है.
आजकल की भागदौड़ और टेंशन भरी जिंदगी में हर कोई ऐसी फ़िल्म देखना चाहता है कि जिससे उनका मूड थोड़ा ठीक हो जाए. ऐसे में ट्रेजिक एंड वाली फ़िल्म बनाना थोड़ा चुनौतीभरा काम तो है ही. जहां संजय लीला भंसाली हम दिल दे चुके सनम देवदास और रामलीला जैसी दुखभरी कहानी को कामयाब बना चुके है तो वहीं सांवरिया, गुजारिश और जैसी फ़िल्मों में अपने हाथ भी जला चुके है.
संजय के उदाहरण से आप समझ सकते है कि इस तरह की फ़िल्मों को कैसे आडियंस का फेवरट बनाया जाए इसके लिए काफी सोच समझकर फ़िल्म बनाना पड़ता है.
कहते है रुलाने से ज्यादा हंसाना मुश्किल है लेकिन आज के दौर में ट्रेजडी फ़िल्म बनाना थोड़ी टेढ़ी खीर हो गया है.